जब पूछा उसने मुझसे-"रंगूँ तुम्हें किन रंगों से?"मैंने कहा-रंगना मुझे तुम उस रंग सेजिसमें मिला हो-शहीदों की शहादत का रंग,बुद्ध के शांति का रंग,राधा-कृष्ण के प्रेम का रंग,श्री राम के मर्यादा का रंग,माता सीता की सहिष्णुता का रंग,उर्मिला के त्याग का रंग,माँ शारदा की वीणा के धुन का रंग,नटराज के नृत्य का रंग,शिवाजी के हुँकार … Continue reading होली
Author: richaswarved
भवसागर है जो संघर्ष का, करते हैं मेहनत हम काँटों पर चलने का, मिथ्या सुख की मृग-तृष्णा से भाग-भाग कर थकने का, बुन रहे ऐसा मकड़ी जाल इर्द-गिर्द अपने कि खुद ही साधन बटोरते अपने आप दम तोड़ने का। संसार है श्रम और तपस्या एकमात्र विश्राम। अरे! एक बार विश्राम करके तो देखो! अलल पक्षी-सा … Continue reading श्रम और विश्राम
जब तुम परोक्ष होते हो कौंधे निज हृदय में बातें, चाहूँ पर न करूँ शिकायतें, और जो अब सन्मुख हो मेरे बिसरा गई है सब कुछ, रह गए केवल तुम हो। आसक्ति के समुद्र में ढूँढने चले, प्रेम-मोती वहाँ कैसे मिले? निर्धूम अग्नि में जो न जले, तो आनंद फुहारे कैसे मिले? मन व पवन … Continue reading अलौकिक प्रेम
नयनों से बूँदे छलक रही हैं और तुम अश्रुओं की सीढ़ियाँ चढ़कर नैनों से उर में समा रहे हो। सब कहते हैं- तुम जा रहे हो। पर मैं कहती हूँ- तुम आ रहे हो। बीत गए रैन कई, भोर भी देखे कई, मौसम भी बदले और साल भी गुज़रे कई। शीतल बह रही बयार है, … Continue reading तुम गए कब?
मैं खुशकिस्मत था, जो लला था, कृष्ण कन्हैया सा, दो माँओं का लाडला, एक का सूरज दूजे का चाँद-दुलारा। एक माँ ने जन्म दिया, फ़ौलादों-सा जिगर और हौसला बुलंद दिया, पर दूजी की सेवा को मुझे खुद से ही दूर किया। एक माँ की रक्षा करने को सरसों के खेतों से, गलियों और चौराहों से, … Continue reading शौर्यगाथा
उड़े रंग, अबीर- गुलाल, नाचे मन हो कर निहाल। सब ओर है छाया, बैंगनी रंग में रहस्यमयी माया। फिर भी है सागर और गगन, नीली चादर ओढ़े ये मगन। लह-लहा रही हैं फसलें हरी-भरी, समृद्धि लेकर ये खड़ीं। आनंद में है, चमक रहा, सूर्य का पीला रंग बिखर रहा। लाल और केसरी भी उड़ रही, … Continue reading होली