भवसागर है जो संघर्ष का,
करते हैं मेहनत हम
काँटों पर चलने का,
मिथ्या सुख की मृग-तृष्णा से
भाग-भाग कर थकने का,
बुन रहे ऐसा मकड़ी जाल इर्द-गिर्द अपने
कि खुद ही साधन बटोरते
अपने आप दम तोड़ने का।
संसार है श्रम
और तपस्या एकमात्र विश्राम।
अरे!
एक बार विश्राम करके तो देखो!
अलल पक्षी-सा उन्मुक्त
सीधे गगन में उड़ कर तो देखो!
शशि को चकोर-सा
एक टक निहार कर तो देखो!
सुख का अमृत पीकर
आँखों से मोती बहा कर तो देखो!
By: Richa Kumari
Chemical Engineering
Batch: 2018
बहुत ही सुंदर👌🏼 सच कहा है ।
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