नयनों से बूँदे छलक रही हैं
और तुम
अश्रुओं की सीढ़ियाँ चढ़कर
नैनों से उर में समा रहे हो।
सब कहते हैं- तुम जा रहे हो।
पर मैं कहती हूँ- तुम आ रहे हो।
बीत गए रैन कई,
भोर भी देखे कई,
मौसम भी बदले
और
साल भी गुज़रे कई।
शीतल बह रही बयार है,
हृदय पुलकित और हर्ष अपार है,
आज फिर बह रहे अश्रु,
इन प्रेम के मोतियों में
मगर अब कुछ मिलन के धार हैं।
उर से निकल कर आज तुम
हृदय-पद्मिनी के अंशु बन
छा रहे हो।
सब कह रहे हैं,
पुनः तुम आ रहे हो।
पर मैं कहती हूँ,
तुम्हारा आना और जाना महज़ भ्रम है,
तुम तो शास्वत हो,
दुनिया को नज़र बस आज आ रहे हो।
So nice mam,..
LikeLike
khub 👌
LikeLike
बढ़िया
LikeLike
👌👌👌👌👍👍👍
LikeLike
“तुम्हारा आना और जाना महज़ भ्रम है,
तुम तो शास्वत हो”🔥
बहतरीन 😊
LikeLike
बहुत खूब।
LikeLike