ऊपर आकाश, नीचे आकाश बीच में थोड़ी जमीं बची थी जहाँ अचंभित खड़ा था प्रखर प्रकाश !!! ऐसा लग रहा था मानो यथार्थ की कड़वाहट, रोज़ के कोलाहल को छोड़ किसी काल्पनिक दुनिया में आ पहुँचा हूँ, हक़ीकत में कहीं ऐसा होता है भला ?, ऐसा लग रहा था मानो सोनपरी ने अपनी अन्य नन्ही … Continue reading दार्जिलिंग: पहाड़ और शांति