असंतुलन समाज का फिर, नयनों के द्वार खोल रहा है जहाँ भी देखूँ , दीनता का कोई मोल रहा है हो हृदय दर्द से विचलित,खुद को टटोल रहा है, इसलिए मेरा अशांत मन चीख-चीख कर बोल रहा है, खुश है वे जिनके थाली में छप्पन भोग बरसता है। हाथें है घृत भरी और भोजन से … Continue reading दीनता का दंश
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रावण द्वारा सीता अपहरण से राम के साथ आर्यावर्त की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी ।सागर लाँघ कर लंका पर चढ़ाई करना जब दुष्कर लगने लगा तब माँ की आराधना करते हुए नर-वानर की मैत्री की शक्ति स्थापित हो सकी।।मां चंद्रघंटा बनी कृपामयी। रोको माँ यह अत्याचार तन पर ,मन पर, जन जीवन पर , … Continue reading माँ से एक भक्त की अरदास
बापू के जन्म दिवस पर, राजधानी दिल्ली के राजघाट पहुँचने के लिए उद्वेलन भरा किसान आन्दोलन। प्रस्तुत कविता में उन अन्नदाता किसान पुत्रों के मन की पीड़ा को मरहम का उपहार दिलाने के उद्देश्य से ही किसी महात्मा के जन्म दिवस की छायावादी अंदाज में व्याख्या हुई है, जो आज की ताजी खबर होगी । … Continue reading तुम भी रह गए बापू,दिल्ली के ही होकर