पुरातत्वविद

कितना कुछ बचाया जा सकता था,विलुप्त हो गए नदियों, पहाड़ो या पंछियों को,किसी का बचपन हो या एक पूरी सभ्यता को। संजोए रखना, कितना कठिन होता है,समस्त संसार के विरुद्ध चलते रहना,तमाम खो रही चीजों को रख पाना भी मुश्किल है। शायद इसलिए भी एक प्रेमी बागी कहलाता है,जिसने संजो रखा है अपने भीतर मातृ … Continue reading पुरातत्वविद

रक़ीब

साहिलों से दूर, तूफ़ानों में आ गयामंज़िल का मुसाफ़िर, महफ़िल में आ गया चिलमन हटाने आज वो आए हैंइस प्यासे के पास कैसे कुआँ आ गया शराब तो मुझे चढ़ती ही नहींवो तो तुम सामने थे तो नशा आ गया सितारों के सुकून में ख़लल पड़ गयाचॉंद जो आज मेरे हुजरे में आ गया तासीर … Continue reading रक़ीब