ज़िन्दगी क्या है, किस लिए है?
वास्तव में यह कोई समझ नहीं पाया।
हर शख्स इसे अपने अनुसार जीना चाहे,
पर कांटों से भरी पड़ी है जिंदगी की राह,
बावजूद इसके कभी न कम होगी जीने की चाह।
कभी ठोकरें खाई, उदास हुए
कभी सफलता मिली तो मुस्कराए ।
हर पल बदलती रही यह जिंदगी,
अंततः हँसना- रोना सिखा गई ये जिंदगी।
बचपन के वे पल रहते हैं सुहाने ,
सभी का प्यार और दिल से मिले वे आशीर्वाद,
यौवन में भरा रहता है उन्माद –
जिससे रूठे रहते हैं सभी।
बुराइयों के पहाड़ बनाया करते हैं सभी,
काल्पनिक अच्छाइयों से ही खुद को बहलाते हैं।
जिंदगी का अर्थ है दूसरों के लिए जीना,
सब की खुशी में हँसना और हर एक दुख में आँखें नम होना।
ना कुछ लेकर आये हैं, ना कुछ लेकर है जाना,
जो भी पाया है उसे इसी धरती,इन्हीं रिश्तों पर है बिखेरना।
शुभम राज
उत्पादन अभियंत्रण
द्वितीय वर्ष
क्रमांक- १७०२०४२