कई सवाल थे,
सदियों से किसी के शोषण की हज़ारों अनकही बेड़ियों में जकड़ी
हर उस नारी के अंतर्मन में,
जिसने तीन रुप से प्रहार करते हुए एक ही
शब्द को सुना, तीन बार
और क्षण मात्र में खो दिया, अपना संसार ।
बिखर गया था उसका जीवन।
हर दिन कोसा है उसने,
ऐसे संविधान के पन्नों को
सैकडों बार खटखटाया है उसने,
उस अदृश्य न्याय का द्वार
कई बार गुहार लगाई है,
उस बधिर सरकार से
और हर दिन कोसते हुए,
अपने ही भाग्य विधाता को
आँसू बहाए हैं अनगिनत।
किसी दिन समाज के तानों ने दिया रुला
तो किसी रात अपने ही नवजात को बिलखते हुए देख,
स्वयं ही अश्रु छलक आए
सात दशक लगे उस आवाज़ को सुनने में,
हमारे इस देश को।
मगर आज की यह सुबह,
देखा है हमने इतिहास में जुड़ते इस पृष्ठ को।
किसी के सपने को साकार होते हुए
किसी की सोच को मिलते हुए आकार।
किसी की चीखती होठों पर मुस्कुराहट की एक लहर सी
देखी है एक नई सुबह उन्होंने
जीवन के अंधकार की आदत सी हो गई थी जिन आंखों को।
उस नारी के हाथों को मिल गई कलम,
उसकी कलम को बिछड़ा साहित्य,
और उसके जीवन
को उसका अस्तित्व।
आज मिल रहा है उस तलाक़ को खुद से ही तलाक़,
हजारों के जीवन का वजूद छीना था जिसने।
आज से होगी अग्रसर
स्वतंत्र भविष्य की नई राह पर,
इस भारतवर्ष की प्रत्येक नारी।
परतंत्रता व शोषण की जंजीरों से मुक्त कराता
आखिरी उपहार था
विदा लेते इस वर्ष का।
मानो कुछ यूँ कह गया हमसे,
“ऐ मेरे हमवतन,
ऐ मेरी गुलजमी
करो आगाज़ किर इस सफ़र का,
मंज़िल-ए-इश्क राहे कमर का। “
आर्या गर्ग
-विद्युत अभियांत्रिकी
-सत्र 2017-2021