होली आती है, पहले की भाँति तो नहीं लेकिन दिनभर के लिए रह ही जाती है। बाज़ार माह भर पहले से नहीं लेकिन सप्ताह पहले सज ही जाते हैं। और पिताजी दो दिन पूर्व भागदौड़ में सही पकवान की सामग्री ले ही आते हैं। सामग्रियों में अब पिचकारियाँ नहीं रहती। विषाद का विषय है, लेकिन … Continue reading बदलती होली…
Author: suchitahembrom
The value of an idea lies in the using of it."-Thomas Edison The lazy winter sun was shining somewhat brightly on December 11, the atmosphere in college charged with excitement and vigour. For the day was special, the budding entrepreneurs were all set to showcase their startup ideas before the eminent delegates. The event was … Continue reading 2nd Entrepreneurial Conclave
कंठ खोल ,सुर नही, स्वर की गति को थामा हैं। उल्लास मन कुछ बोल पाए यह उदास मन ने न माना हैं। हर क्षण ये चिर मन के, रंग ही फीके पड़ गए। हम बच्चे ही अच्छे थे, यूँ ही क्यों आगे बढ़ गए। ये काल के कपाल की चाल से, सब रुसवाई है , … Continue reading दीये जलाएं…
ऊपर आकाश, नीचे आकाश बीच में थोड़ी जमीं बची थी जहाँ अचंभित खड़ा था प्रखर प्रकाश !!! ऐसा लग रहा था मानो यथार्थ की कड़वाहट, रोज़ के कोलाहल को छोड़ किसी काल्पनिक दुनिया में आ पहुँचा हूँ, हक़ीकत में कहीं ऐसा होता है भला ?, ऐसा लग रहा था मानो सोनपरी ने अपनी अन्य नन्ही … Continue reading दार्जिलिंग: पहाड़ और शांति
बाबा, कुछ सवाल पूछूँगी। जवाब दोगे ना ? बोलो! दोगे न ? क्यों पहनते हो वही इक कुर्ता होली और दिवाली में ? क्यों सर्दी में नहीं पहनते भैया-से जूते ? क्यों आते हो रात को देरी से ? जबकि शाम तक ही रहता ऑफिस तुम्हारा। क्यों अब स्कूटर से नहीं जाते काम पर, और … Continue reading बाबा, मेरे उत्तर…
माँ, कल मैं अलमारी साफ कर रही थी । हाँ, कर लेती हूँ अब,आप जो नहीं हैं मेरे पास। अलमारी में उमड़े तूफ़ान से लड़ते लड़ते थक कर सुस्ताने बैठी तो आप ही जेहन में थीं।कितना आसान था सबकुछ, सारी उधेड़बुन से निकलना ,चाहे वो अलमारी की बात हो या मुश्किलों की... और न जाने … Continue reading बिटिया की पाती:माँ के नाम
