घर-परिवार की रौनक बढ़ाती,

खुशियों से आँगन महकाती,

पीढ़ियों से बोझ कहलाने का दर्द सहती,

आज खुद परिवार की जिम्मेदारी उठाती,

यूँ ही नहीं,  वे बेटियाँ कहलाती |

 

एक नहीं, दो घरों को संभालती,

स्वयं का घर छोड़, पराये घर को अपनाती,

निरंतर अपनों की खुशियों को सींचती,

सदैव सुख-समृद्धि की कामना करती,

यूँ ही नहीं,  वे गृहलक्ष्मी कहलाती |

 

धव के कदम से कदम मिलाती,

सुख-दुख जैसे, हर परिस्थिति को अपनाती,

कभी सारथी बन मंजिल तक पहुँचाती,

तो कभी साथी बन धैर्य बंधाती,

यूँ ही नहीं,  वे सहधर्मिणी कहलाती |

 

हमारी खुशियों के खातिर, अपनों से लड़ जाती,

ममता की छाँव में रख, हर बुराई से बचाती,

स्वयं की खुशियों को त्याग, हमारा भविष्य संवारती,

कभी गुरू, तो कभी दोस्त बन जाती,

यूँ ही नहीं,  वे ममता की मूरत कहलाती |

 

एक ही जीवन में, अनेक रूप दर्शाती,

त्याग और बलिदान को परिभाषित करती,

कभी औरों के साथ कदम मिलाती,

तो कभी खुद पीछे हट, अपनों को आगे बढ़ाती,

यूँ ही नहीं,  वे शक्ति कहलाती |

One thought on “यूँ ही नहीं

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