उस आखिरी शाम,

‌तुम्हारी उंगलियाँ मेरे पसीने से नम हाथों से

‌फिसल तो गईं

‌लेकिन,

‌तुम गए नहीं।

तुम्हारी कमीज का वो बटन ,

‌हर सवेरे जो कमजोर हो टूट जाता था,

‌आखिरी दफा

‌पक्के धागे से सिलकर

‌चला गया था,

‌लेकिन ,

‌तुम गए नहीं।

‌सदियों से मेज पर सजती दो प्यालियाँ ,

‌अब अकेले ही दिखती हैं

‌आधी चाय लिए,

‌‌जैसे पीते थे तुम

‌लेकिन ,

‌तुम गए नहीं।

‌मगर तुम गए क्यों नहीं?

‌पता नहीं,

‌शायद ,

‌आये थे तुम ठहरने के लिए ,

‌कभी न जाने के लिए ,

‌ बस हाड़- मांस का ढांचा बन कर

‌आये थे अपनत्व की महक लिए

‌वही महक जो आँगन में बोये

‌माँ के धनिये से आती थी,

‌आये थे तुम खुद में

‌मेरे अस्तित्व की परछाई लिए

‌आये थे तुम मेरे फाँकों को

‌कला से सींचने

‌और सींचा भी तुमने

‌मुझे

‌मेरी बोझिल आत्मा को

कला से

‌और शायद इसलिए ,

‌हाँ इसलिए

‌तुम्हारे जाने के बाद भी

‌तुम गये नहीं

‌तुम नहीं गये।

13 thoughts on “तुम गए नहीं

  1. यू अतीत में देखूं,
    कुछ पल साथ के,
    जो ख़ाब संजोये थे हमने,
    बीते वक़्त के साथ,
    सब चले गए,
    पर उन यादों के साथ,
    तुम गए नहीं।।

    Penned it 💕

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