आपकी भावनाएँ आपके विचारों की दासी हैं, और आप अपनी भावनाओं के दास हैं।
~एलिज़ाबेथ गिल्बर्ट
“मनुष्य सबसे संवेदनशील प्राणी है” ऐसा कहा जाता है। गौर करने की बात है कि यह कहता भी मनुष्य ही है; हम और आप। आज दुनिया में गंभीर हालात हैं। इसका कारण मनुष्य ही है, या यह कह लीजिए, मनुष्य की बुद्धि। अपने फायदे के लिए किसी और का नुकसान, दूसरे लोगों के जीवन को कमतर आँकना, शक्ति का लोभ, साम्राज्य की महत्वकांक्षा; इसके आगे किसी भी चीज़ को महत्व न देना ― मनुष्य की मनसा है।
आइए एक नज़र डालते है सीरिया के राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक इतिहास तथा वर्तमान की ओर…
सीरिया का राजनैतिक जीवन उथल-पुथल भरा रहा है। १९४६ में आज़ाद होने के बाद यह एक गणतांत्रिक देश बना परंतु १९४९ में ही तख़्तापलट हो गया। १९५४ में फिर से सत्ता जनता के हाथों में आई। १९७१ तक सीरिया में एक स्थाई सरकार नहीं बन पाई थी।

मार्च १९७१ में हफीज़ अल असद ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया और अपने मृत्यु तक (सन् २०००) राष्ट्रपति पद पर बने रहे। वह एक धर्मनिरपेक्ष नेता थे। संविधान में उन्होंने यह नियम नहीं बनाया कि सीरिया का राष्ट्रपति एक मुसलमान ही हो। मुस्लिम कट्टरपंथियों में इस बात की नाराज़गी थी, परिणामस्वरूप असद को ‘अल्लाह का दुश्मन’ घोषित कर दिया गया। सन् १९७६ से १९८२ तक के कई विद्रोहों के बावज़ूद असद की सरकार बनी रही। परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनका पुत्र बशार अल असद सीरिया का राष्ट्रपति चुना गया, जो अपने किए वादों को पूरा करने में असफल रहा। उसकी नीति केवल अल्पसंख्यकों को लाभ दे रही था जिनमें या तो सुन्नी व्यापारी थे, या तो वे लोग जो सरकार के संपर्क में थे।

भरी बारूद को बस एक चिंगारी की कसक थी, जो कि पूरी की सन् २००७ से २०१० तक के भयानक सूखे ने। भोजन सामग्रियों के दाम बढ़ने लगे, कृषक परिवार शहरों की ओर पलायन करने लगे, बेरोजगारी बढ़ी। इन सब का प्रभाव सुन्नी मुसलमान बाहुल्य शहरों में काफी अधिक था। सीरिया अपने भविष्य को भाँप चुकी थी।
सन् २०११ में दमिश्क शहर की एक छोटी-सी घटना ने ‘गृहयुद्ध’ का रूप ले लिया; जहाँ कई युवक विरोधियों की अगुवाई कर रहे थे और राजधानी दमिश्क में सुधार एवं राजनैतिक कैदियों को छोड़ने की मांग कर रहे थे। उन्हें फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया गया।
गृहयुद्ध धीरे-धीरे सशस्त्र युद्ध में तब्दील होने लगा। सरकार विरोधी गुटों ने अपनी सेना बना ली। इनमें सुन्नी अरब विद्रोही दल, आज़ाद सीरियन सेना एवम् बहुसंख्यक-कुर्दिश सीरियन गणतांत्रिक फौज (SDF) शामिल थे। इन फौजों ने शहरों में कब्ज़ा जमाना शुरू कर दिया। २०१३ तक विद्रोही गुट कई शहरों पर कब्जा कर चुका था। यह तो बस सीरिया के तबाही की शुरुआत थी।
सन् २०१३ की बसंत । रक्का शहर में इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (ISIS) की पहली दस्तक । अलकायदा के साथ शुरुआत करने वाला यह संगठन सीरिया पर कब्ज़ा करने को अब युद्ध कर रहा था। सर्वप्रथम SFA से सीरिया के सभी चार सीमा चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया। अब शहरों में कब्ज़ा करने हेतु युद्ध और तनाव शुरू हो चुका था। मानव-जीवन और मानवता को लीलता यह युद्ध अपना चरम ढूँढता रहा।
अब तक तीन लाख लोगों की जानें जा चुकी है जिनमें ६०-९५ हजार सैनिक, ४०-६० हजार अर्धसैनिक, २००० हेज़बोल्लाह और १६०० ईरान के सैनिक भी हैं। ५००० सैनिक एवं २००० सहयोगी बंधक बनाए गए। ये सेनाएँ सीरिया सरकार का साथ दे रही थी। एक करोड़ से ज़्यादा लोग बेघर हुए। ७६ लाख लोग देश में आंतरिक रूप से विस्थापित हुए व करीब ४८ लाख लोग देश से पलायन कर चुके हैं। कुछ पड़ोसी देश जैसे तुर्की, लेबनॉन, जाईन में विस्थापित हुए। यह संख्या वहाँ के बहुसंख्यक जनसंख्या से भी ज़्यादा है।

‘ऐलन कुर्दी’ – तीन साल का बच्चा जो उस समय डूब गया, जब उसका परिवार देश छोड़ कर कनाडा जा रहा था। यह तस्वीर एक तुर्की पत्रकार द्वारा लिया गया और पूरी दुनिया में फ़ैल गया। इस तस्वीर ने दुनिया के लोगों को भावुक तो किया परंतु इससे सीरिया की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। जब हैवानियत सिर चढ़कर हुँकारती है, तब भावुकता कहीं कुचली-मसली दफ़्न हो जाती है। वहीं १३ साल की एक लड़की एक छोटे चलचित्र के माध्यम से अपना दर्द दुनिया को बता रही होती है।
सीरिया सरकार एवं विद्रोही, दोनों के समर्थन में कई देश आगे आए। रूस, ईरान, हेज़बोल्लाह सीरिया सरकार के समर्थक रहे जबकि संयुक्त अमेरिका, बहरीन, सऊदी अरब, तुर्की, फ्रांस, कनाडा, यू.के. विद्रोहियों के। देश असद-शासन को पलटना चाहता था जिसका परिवार सन् १९७१ से शासन में रहा। CIA पर यह भी आरोप लग चुका है कि वह ISIS को प्रशिक्षण एवं शस्त्र प्रदान करने में शामिल है। संयुक्त राष्ट्र ने ६.५ बिलियन डॉलर का प्रस्ताव रखा सीरिया के पीड़ितों की मदद के लिए। यह किसी एक समय में किसी एक आपातकाल के लिए सर्वाधिक प्रस्तावित धन है। जनवरी २०१५ में यह बात सामने आया कि २१२००० बंधकों में से केवल ३०४ तक ही भोजन पहुँच पा रहा था। टीकाकरण एवं अन्य देखभाल सामग्री भी बाँटी गई। इरान रोज़ ५०० से ८०० टन आटा सीरिया निर्यात करता है। इजरायल ने ७५० सीरियन का इलाज कराया। रूस का दावा है कि उसने ६ मानव सहायता केंद्र बनाए हैं जिसमें ३००० शरणार्थी शरण लिए हुए हैं।
दूसरे देशों में शरणार्थियों की संख्या कुछ इस प्रकार हैं:
इनके अलावा बुल्गारिया, यू.एस., बेल्जियम, नॉर्वे, सिंगापुर, सर्बिया, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशों ने भी शरणार्थियों को शरण दिया है।
रूस ने सीरिया में २७ बिलियन डॉलर से भी अधिक खर्च करके एक प्राकृतिक गैस उद्योग की स्थापना की है। यह रूस की सबसे बड़ी स्वतंत्र कंपनी ‘नोवाटेक’ द्वारा स्थापित किया गया, जिसकी रक्षा के लिए ही रूस सीरिया के मामले में इतना संवेदनशील है। विश्व के कई देश इस परियोजना के प्रयोग में लगाए पूँजी के हिस्सेदार है जिसमें चीनी सरकार ने ९ प्रतिशत हिस्सा खरीदा और २ बिलियन डॉलर का ऋण कंपनी को दिया।
हम देखते है कि कई देशों का स्वार्थ भी सीरिया के संदर्भ में देशों को सोचने के लिए मजबूर करती है। अंततः देश भी तो मनुष्यों से ही बनते हैं!
क्या यह संपूर्ण घटना हमें मानव-जाति के सभी आयामों का दर्शन नहीं कराती? क्या यह झकझोरती नहीं? मानवता की दशा कैसी है! एक इंसान को दूसरे इंसान के जीवन का मूल्य नहीं समझ आता। एक इंसान को दूसरे इंसान का दर्द महसूस नहीं होता। एक इंसान दूसरे इंसान को देख डरता है मानो सामने मौत आ खड़ी हो। क्या अभी भी हम अपना सर ‘गर्व से’ ऊँचा रख खुद को ”सबसे संवेदनशील प्राणी” का दर्जा दे सकते हैं? अगर आपको मनुष्य की बुद्धि और संवेदनहीनता देखनी हो, उसके सिरों को जानना हो, तो ‘सीरिया’ को प्रतीक के तौर पर लीजिए।
वो बुद्धि क्या जो लाखों को बेघर कर दे, सैकड़ों को अनाथ कर दे, कई बच्चों की जान ले लें; जिनपर हमारा भविष्य निर्भर है, मनुष्यता को रुलाए; दर्द से चीखने को मजबूर करे – कभी अपने बच्चों के लिए, कभी परिवार के लिए, कभी स्वयं के सम्मान के लिए! वो बुद्धि क्या जो मनुष्य के दिल में मनुष्य से ही डर पैदा करे! वो बुद्धि क्या जो मनुष्य और मनुष्यता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दे!! क्या स्वार्थ ही इंसान का आखिरी उद्देश्य हो सकता है? क्या मानवता इतना नीचे गिर सकती है? क्या मानव इतना संवेदनहीन हो सकता है?
शायद…
हाँ!
उत्तम विश्लेषण
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विश्व शक्तियों को सीरिया समस्या के समाधान पर जोर देना चाहिए न कि इस समस्या को और उलझाने पर। अमेरिका एवम् रूस को एक साथ आने की जरूरत है ताकि ये समस्या जो धीरे धीरे पूरे विश्व को अपनी जकड़ में लेते जा रही है, को सुलझाया जा सके। इ यू में ब्रिटेन का बाहर जाना हो या फ्रांस में लगातार हो रहे आतंकी हमले, पूरी दुनिया इस ओर जा रही है जहाँ हर देश अपनी सीमा को बंद करना चाह रहा है। विस्थापन से उत्पान हुई समस्यायों को ध्यान में रखकर देश एवम् विश्व globalisation के मूल उद्देश्य से दूर जा रहा है। ये शुभ संकेत नहीं।
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