नभ के गर्भ से दामिनी तीव्र गति से सरसों के खेत के कोने में खड़े, लंबे ताड़ के गाछ पर गिरती है, और वह ताड़ का गाछ पूरा काला पड़ जाता है। धमाका इतनी ज़ोर का होता है कि पाँच कोस दूर तक कि भूमि कम्पित हो उठती है, मानो कोई अत्यधिक तीव्र भूकंप हो। रात के डेढ़ बज गए हैं। वर्षा के कारण पूरे गाँव की बिजली उड़ चुकी थी, और मुखिया ने मिस्त्री को बोल जल्द से जल्द गाँव वाले अस्पताल का जनरेटर चालू करवा दिया। अस्पताल में मीनाक्षी अपना बच्चा गर्भ में धारण किए लेटी हुई है। उस समय का शुभागमन हो चला है जब बच्चा अपनी माता के गर्भ से अलग हो इस दुनिया में अपना स्थान बनाए। वह बालक विश्व को अपने जिज्ञासु नेत्रों से देखने एवं अपने छोटे पंखों से नापने हेतु आतुर है।

जहाँ कोई संपूर्ण व्योम में पतंग बनने को इच्छुक है, वहीँ पृथ्वी पर इन सब से कुछ दो – सवा दो सौ मील दूर, एक लड़का सो नहीं पा रहा है, या बेहतर हो की कहें, वह सोना नहीं चाहता है। दूसरों के जीवन के समीकरणों को सुलझाने वाला शख़्स आज स्वयं अपने जीवन के समीकरणों में उलझ चुका है। न वर्तमान की चिंता है और न ही भविष्य की, फ़िर भी कुछ ऐसा हो चला है जिसने एक द्रव्य के मन में शून्य उपजा दिया। अपने जीवन के इक्कीस वर्षों में विवेक के अनेकों अनुभव हैं। तर्कसंगतता उन अनुभवों का सारांश है किन्तु आगे किस प्रकार से संसार के प्रतिबंध इस संत के यज्ञ में हनन करेंगे, इसका उत्तर कोई नहीं देना चाहता है। अपने सपनों को अब यह मानव नहीं देख पा रहा है। तर्कसम्राट के जिज्ञासु नेत्रों के इर्द-गिर्द तेजाब का छिड़काव दिखाई दे रहा है। इसके पंख सिकुड़ चुके हैं, और उड़ान भरने के क़ाबिल नहीं रहें।

तर्कसम्राट चिंतित हैं। सुनने में आया है कि कुछ दिनों पहले “समाज” के अभिजात वर्ग को अव्यवस्थित एवं अपार शक्ति सौंपी जा चुकी है। और उसके सबसे बड़े मूर्ख को मुखिया बना दिया गया है। समाज का सर्वहारा पहले से ही अंधकार में जी रहा है। एक ऐसा अंधकार जो स्वयं अंधकार ओढ़े हुए है। इस अंधेर नगरी का राजा “चौपट” है जिसका राज्याभिषेक बोतल बंद पानी से हो रहा है, क्योंकि गंगा सूख चुकी है।

इतना सब कुछ घटित होते भर में बालक का जन्म होता है। “लड़का हुआ है! ” बोलते हुए अस्पताल की नर्स बच्चे को लेकर माता एवं परिवार से दूर भागती है। “पूरा पाँच सौ रुपया लेंगे”, उत्तेजित नर्स बोलती है “नहीं तो भूल जाओ बच्चे को।” डॉक्टर गुस्से से नर्स पर चिल्लाता है, और फ़िर नर्स उस बच्चे को मीनाक्षी के परिवार को सौंपती है। बच्चे को छोटे से बिस्तर पर रख दिया जाता है। नन्हा बालक अस्पताल के छत पर टंगी हुई लाइट बल्ब को अपने जिज्ञासु नेत्रों से, बिना पलकें झपकाए, एक टक देख रहा है। उसे देखते हुए अपने पंखों को जोड़ से हिला रहा है। ऐसा मनमोहक दृश्य देख उसके निकट बैठा समाज उसके आयुष होने की कामना कर रहा है।

तिमिर का साम्राज्य अकारण स्थापित नहीं होता है। हमारे इर्द-गिर्द हमेशा से उन राहुओं का बसेरा रहा है जो शक्तिशाली पदों पर रहकर ज्ञान के सूर्य को निरन्तर ग्रस रहे होते हैं।

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