चुप्पी साधे एक लड़की
जो बीच-बीच में हंसी की फुहार दबा नहीं पाती
अपने कंठ से निकले ऊँचे स्वरों को कोसती है।
वह ज्यादा बोलती नहीं,
बस सोचती है।
घुल जाती है वो मीठी प्रेम-कविताओं की चाशनी में,
मिल जाती है वो इंद्रधनुष के रंगों में,
सिमट जाती है वो मयूर के पंखों में,
और निखर उठती है सफ़ेद-पीली धूप में।
खिलखिलाते चेहरों में वो ढूँढ लेती है अपनापन,
और…
और लिख डालती है एक कविता।
झरने की तरह एक बार में,
पूरे बल से टकरातीं है वह,
स्वयं के भीतर बैठे कवि से।
प्राय: मेल की प्रेयसी ठहरी वह,
वह नाद,
वह संवाद,
दोबारा बैठा नहीं पाती,
चुप्पी साध अनंत प्रतीक्षा में,
फिर,
स्थिर शरीर में अस्थिर चेतना को जागृत कर
समाधि में बैठ जाती है।
यही तो है,
अनंत से चली आती,
हर कवयित्री की अंत तक प्रतीक्षा।
बेहतरीन ।
LikeLiked by 2 people
Bht sunder ♥️
LikeLiked by 1 person
बहुत ही शानदार !!
लेखनी में सरसता कोमलता सरलता का बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हैं ।
ऐसे ही लेखनी घसीटते रहो बहुत तेज धार वाली कलम की प्रतीक्षा में ।
बहुत बहुत शुभकामनाएं !!
LikeLike