निकल पड़े हैं कमरे से
कोई आवाज़ देकर देख लो
निकालो खाता चार सालों का
हिसाब लगा कर देख लो..

पहले पन्ने पर यारी होगी
दूजे में कोई प्यार मिलेगा
तीसरे पर कुछ होंगे सपने
चौथे में खरीदार मिलेगा

क्या पाया और क्या खोया अब तक
हिसाब लगाकर देख लो
निकल पड़े हैं कमरे से
कोई आवाज़ देकर देख लो..

धूल जमी है क़िताबों में
सफ़र अब भी जारी है
धीरे-धीरे चल रहे हैं
डिग्री से बस्ता भारी है

आँखें सूजी पड़ी हैं सबकी
कुछ रातों से कोई सोया नहीं है
मर्द हैं साले सारे के सारे
अलविदा कहा पर रोया नहीं है

जाते-जाते गले लगाकर
कोई मुस्कुराकर देख लो
निकल पड़े हैं कमरे से
कोई आवाज़ देकर देख लो..

चलो ना, रास्ते बदलते हैं
आज घूमकर चलते हैं
उस नीली वाली के चक्कर में
उसके हॉस्टल से गुज़रते हैं

गालों पर वो निशां पहला
लिप्स्टिक का और थप्पड़ का
आंँखों में अब भी घूम रहा है
वो इश्क़ वाली दोस्ती का

कोई अचानक पीछे से आकर
हाथ थाम कर देख लो
निकल पड़े हैं कमरे से
कोई आवाज़ देकर देख लो..

कहीं तो कुछ छूटा नहीं है
कोई दिल तो तुमसे रूठा नहीं है

आज बेवजह तुम हमसे
हाल पूछकर देख लो
निकल पड़े हैं कमरे से
कोई आवाज़ देकर देख लो।।

 

सौरव शुभम
वैद्युतिकी अभियंत्रण
सत्र २०१६

 

2 thoughts on “आवाज़ देकर देख लो

Leave a comment