‘शेखर एक जीवनी’ महज एक उपन्यास नहीं है और न ही कथानायक शेखर की जीवनी का लेखा-जोखा, वरन् स्नेह और वेदना का जीवन-दर्शन भी है, जिसे लेखक ने अपने जीवनानुभवों के विस्तृत दायरे के सूत्र में पिरोया है। सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की यह अमर कृति हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर है।

प्रमुख चरित्र शेखर एक आदर्शवादी सिद्धान्तप्रिय युवक है, जिसे पराधीनता स्वीकार नहीं, जो अपने तर्को से समाज को बदलना चाहता है, जो बहस की हद तक तर्क करता है, जेल में अपने मन को खूब खंगालता है, शारदा के प्रति आकर्षण और शशि के प्रति अगाध स्नेह को जीवन का अर्थ और उद्देश्य समझता है। कहीं वह पलायनवादी हो जाता है तो कहीं यथार्थवादी के रूप में नियति को चुपचाप स्वीकार कर लेता है।

इस उपन्यास में शेखर के माध्यम से व्यक्तिगत प्रेम भावनाओं के संवेदनात्मक और व्यापक चित्रण के साथ, पृष्ठभूमि में विद्रोही मानव-मन और समाज के बीच विरोध की गाथा भी, उसी अंदाज़ और रफ्तार से चलती रहती है। ‘अज्ञेय’ ने शेखर के बालपन की घटनाओं से उसके विद्रोही, जिज्ञासु, विचारशील, स्वाभिमानी और कठोर होने का चित्र रचा है। वयःसंधि के शेखर के मन में अथाह प्रश्नों का जाल है, जिसके उत्तर की खोज में वह आता फिरता है। उपन्यास पढ़ते समय पाठक कहीं न कहीं स्वयं के होने का महसूस करता है तथा उसमें जीवन को देखने का नवीन दृष्टिकोण भी पैदा होता है। उपन्यास के दो भाग कई खंडों में विभक्त है जो पाठक को एक ऐसे संसार में ले जाते हैं जहाँ वह स्वयं को भूल ही जाता है या शायद गहराई में जाकर स्वयं को अधिक पहचान पाता है। उपन्यास के तीसरे भाग के अप्रकाशित होने के बावजूद भी उपन्यास में अपूर्णता का आभास नहीं होता। ‘अज्ञेय’ ने कई जगह रोजेटी, टेनिसन, कीट्स आदि की पंक्तियों को शेखर के मनोभावों को व्यक्त करने का माध्यम बनाया है, जिससे शेखर के व्यक्तित्व का अनुभव पाठक के लिए सहज हो जाता है।

 

‘शशि’ शेखर के लिए सप्तपर्ण के तरूण गाछ की छाँह है। वही शशि जिसने खुद को होम कर दिया है, जिसके पास शेखर को देने के लिए कुछ नहीं है। पति-परित्यक्ता शशि शेखर के आशीर्वाद-भाव को अपने श्रद्धा-भाव से जोड़ती हुई आत्मीयता के वृत्त में धुल जाती है। स्नेह की अविरल धारा से जुड़े दो मन, जो असंभव से जीवन में एक-दूसरे को सँभाले हुए हों, नहीं हारने देना चाहते एक-दूसरे को।

एक स्थान पर स्नेह को परिभाषित करते हुए ‘अज्ञेय’ ने लिखा है –
“स्नेह एक ऐसा चिकना और परिव्यापक भाव है कि उसमें व्यक्तित्व नहीं रहते। स्नेही अपने स्नेह पात्र को कभी याद नहीं करता, क्योंकि वह उसे कभी भूलता नहीं,…………..”

शशि के जीवन के अन्त को लेखक ने उपन्यास का मार्मिक क्षण बना दिया है।
“क्या होता है शशि ?” “सुख, शेखर, सुख……..”
शशि चली जाती है, पर शेखर के जीवन में निरंतर प्रेरणा बनकर….एक छाया की तरह…….. शशि………. सदैव उसके साथ शशि।
वस्तुत: ‘शेखर एक जीवनी’ विचारणीय दर्शन और मार्मिक स्नेह का रोचक मिश्रण है। यह कथा सिद्धांतप्रिय नवयुवक के स्नेह और आदर्श का विशिष्ट रूप प्रस्तुत करती है, जिसमें बचपन के कविहृदय विद्रोही शेखर से लेकर सामाजिक बदलाव के लिए प्रयासरत और शशि से स्नेह की आप्लावनकारी धारा से जुड़े युवा शेखर तक की महायात्रा है। वेदना और स्नेह जैसे मानवीय भावनाओं का कुछ सरल और कुछ दार्शनिक निरूपण ही इस साहित्य की विशेषता है। ‘अज्ञेय’ ने स्नेह की अनुभूति को अत्यंत सूक्ष्म रूप से ‘शेखर एक जीवनी’ के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया है, जिसमें पाठक बार-बार गोते लगाना चाहेगा और हर बार उसे कुछ नया मिलेगा।

 

#सर्जना_के_२५वें_अंक_में_प्रकाशित

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