किस ओर चला है तू, पीछे छोड़ सारा जहान
कुछ यादें है अनकही, कुछ नग़में हैं अनसुने
उन अधूरे किस्सों को तन्हा छोड़, तू क्यों रहे तन्हा ।

सीने में उलझन किसी टूटे नज़्म-सी है
इंतज़ार करे तो किसका…किस तरह…
जिसे हो आता इन्हें अंतरतम की ध्वनियों में पिरोना
जिसके अंतर से हो निकलते अधूरे नज़्म
और क्षण में झंकृत कर सके सीने की उलझन ।

साँसें है थकी, सहमी
आवाज़ है रुकी पड़ी
सरगम तो जैसे धड़कनों की है बिगड़ रही
मन यूँ ही कभी बोझिल-सा लगे
कि दे जाए कोई…प्यासी तान नई ।

कुछ नज़्म, जो बाहर आना चाहते है
कुछ मीठे गीत हैं जो अंदर बस जाना चाहते है
कि, अंतरे की भी जगह ना रह जाए
इसी तरह बनती जाए हर पल एक नई धुन…
नए नज़्मों तले
जहाँ हो…
धड़कनों की मद्धिम लय…
साँसों की ऊँची तान…
अलंकृत मन की झंकार…
और…सिमटते नज़्म तुम्हारी यादों के ।

किस ओर चला है तू, पीछे छोड़ सारा जहान
कुछ यादें हैं अनकही, कुछ नग़में हैं अनसुने
उन अधूरे किस्सों को तन्हा छोड़, तू क्यों रहे तन्हा
गीत मेरे..नज़्म तेरे…आवाज़ मेरी तेरे यादों की
आ…
यहीं कर दे उसे पूरी ।।

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