आज भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी है और साथ ही बप्पा के आगमन का दिन अर्थात गणेश चतुर्थी है। चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल है। महाराष्ट्र के एक छोटे-से गाँव में रहने वाले मनु के घर में भी इसी तरह चहल-पहल है क्योंकि इस वर्ष मनु के घर पहली बार गणपति का आगमन होने जा रहा है।
महज़ सात वर्ष का मनु गणपति के इस रूप की कथा और उनकी महिमा से अनभिज्ञ है। इसी कारण बप्पा की प्रतिमा को देखकर उसके मन में मानो जैसे प्रश्नों का सैलाब-सा उठ रहा था, जिन्हें वह अपनी माँ से पूछता है-
मनु :
गणपति, गणेश या बप्पा इन्हें कहते,
हर शुभ कार्य से पहले, इन्हें क्यों पूजते?
सबसे पृथक है इनकी काया,
आखिर, कैसी हैं इनकी माया?
बच्चे हो या बूढ़े,
सबके मन में बसते।
हर वर्ष इन्हें अपने घर लाने को,
आखिर, क्यों हैं लोग तरसते?
अपने छोटे-से बच्चे के मुख से इन प्यारे प्रश्नों को सुनकर हँसते हुए माँ ने उत्तर दिया:
माँ :
भोलेनाथ के हैं राज दुलारे,
माता पार्वती की आँखों के तारे।
माँ की आज्ञा या पिता का उपदेश?
धर्म संकट में फंस गए थे बेचारे।
ज्यों ही माँ के वचनों का रखा मान,
पिता ने सर धड़ से पृथक कर डाला,
निष्प्राण हो धरा पर पड़े थे बेजान।
उमड़ पड़ी ममता, जाग उठा क्रोध,
माता पार्वती ने कहा, भोलेनाथ!
क्या माँ की आज्ञा मानना,
ही था मेरे पुत्र का दोष?
गजराज के मस्तक ने शोभा बढ़ाया,
गणपति का नाम कण-कण में समाया।
देवताओं ने की वरदानों की बौछार,
हर कार्य से पूर्व ये ही पूजे जाएँगे,
गज के मस्तक वाले गजानन कहलाएँगे।
माँ की बातें सुनकर मनु को अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए।
पुनः माँ ने मनु से पूछा कि अब बप्पा के विषय में उसकी क्या धारणा है। तब मनु ने कहा-
मनु :
अपार है गणपति की महिमा,
मनमोहक है इनकी प्रतिमा।
बच्चों को हैं सबसे प्यारे,
स्वयं देवताओं के ये दुलारे।
आज का दिन है विशेष,
है हमारी एक ही ख्वाहिश,
ओ! माई फ्रेंड गणेशा,
तू रहना साथ हमेशा।
मनु की इन बातों को सुनकर उसकी माँ को अत्यंत प्रसन्नता हुई। फिर सभी ने सच्ची श्रद्धा और भक्ति भाव से बप्पा का स्वागत किया और खुशियाँ मनायी।
समस्त सर्जना परिवार की ओर से आप सभी को गणेश चतुर्थी की ढेर सारी शुभकामनाएँ। आइये, हम सभी मिलकर बप्पा का स्वागत करें और इस वर्ष पर छाए अंधकार के घने बादलों को छाँटकर, मंगलवर्ष की ओर ले जाने की कामना करें।
कहते उनको हैं दाता
ज्ञान बाटे यहां पे
उन बिन बुद्धि नही जाग्रत
अंधकार दिखे वहां पे।।
जो पूजे जो माने उनको
देते उनको सम्मान यहां
कलम हथियार स्वरूप मिलता
कलयुग की है तलवार यहां।।
हमने माना आपने माना
इष्ट दोनो के है यहां
कलम साक्षी हैं धरा पर
वही बोल रही यहां।।
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बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
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बहुत बहुत धन्यवाद
सर जी
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