लो शुरू हो गया यह आखिरी माह
यह भी तुम बिन गुज़र जायेगा
नम आँखों में बस यादें रह जायेंगी
क्या‌ कॉलेज का सफ़र यूँ ही कट जाएगा?

जीवन की गाड़ी अब कुछ ऐसी चलेगी,
न चाहते हुए भी अलविदा कह रेलगाड़ी पे सफ़र करेगी।
हम सब भीड़ में कहीं खो जाएँगे,
और न जाने कौन से स्टेशन पर उतर जाएँगे
अब तुम्हारी गालियों की जगह‌ बाॅस की फटकार होगी।
सेमेस्टर के जगह वो काम का दबाव होगा।
हर शाम वक्त तो बहुत होगा, पर उस वक्त तुम न होगे
वो चाय का ठेला तब भी होगा पर साथ चुस्की लेने को कोई न होगा।
बर्थडे तो आएगा, बेल्ट से विश करने को कोई नहीं होगा।
पाॅकेट में पैसे तो होंगे पर ट्रिप करने को मंडली नहीं होगी।
गले में दोस्त के हाथ के जगह जिम्मेवारी की‌ माला होगी।

धरोहर हो तुम सब उन यादों की
कदमों की वो थिरकन हो
होंठों की खिलखिलाहट, आवाज़ की गूँज हो
नोक-झोंक की वो एक आवाज़ ‌हो
एक लफ्ज़ में दोस्ती का यही अंदाज़ हो।

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मधुमिता कुमारी
रासायनिक अभियंत्रण
सत्र २०१६

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