होली आती है,
पहले की भाँति तो नहीं
लेकिन
दिनभर के लिए
रह ही जाती है।

बाज़ार माह भर पहले से नहीं
लेकिन
सप्ताह पहले सज ही जाते हैं।
और पिताजी दो दिन पूर्व
भागदौड़ में सही
पकवान की सामग्री ले ही आते हैं।

सामग्रियों में अब पिचकारियाँ नहीं रहती।
विषाद का विषय है,
लेकिन पक्के रंग के डब्बे देख
सब ठीक ही लगता है।

आँगन की टंकी में अब रंग नहीं घुलता
ऊँगली के सिरे से बस लग जाता है रंग
गाल के छोटे से भाग में
लेकिन
प्रेम शायद हृदय में ही रह जाता है।

दिन बीतता है
रंगों से बचते हुए
रंग और खुशियों से
रंगे रहने के
होली के संदेशों में,

इन वर्षों में
सबकुछ बदला है
होली भी बदली है
बस
बदली नहीं माँ की गुझियाँ
वो अब भी पहले के भाँति
ही मीठी लगती है।
उसमें प्रेम रहता है।

और होली मानक भी है
प्रेम, रंग और मिठास की
तो
होली अब भी होली है।
पहले की भाँति न होते हुए भी
पहले के भाँति ही।

सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ !!🙏

One thought on “बदलती होली…

Leave a comment