प्रभु श्री राम क्या सिर्फ एक मनुष्य भर थे? नहीं…! प्रभु श्री राम स्वयं धर्म की परिभाषा भी थे। आज अनेक मानव श्री राम के जिन गुणों का बखान करते हुए दिखते हैं, आज उन गुणों का सर्वत्र लोप दिखाई देता है। ऐसा तो नहीं है कि मनुष्यों ने श्री राम को पूजना बंद कर दिया। त्रेता युग के रावण का संहार तो श्री राम ने कर दिया था किन्तु कलियुगी रावण कहीं ज्यादा कुटिल है। आज का राम लगता है अब भी वनवास में है। आज के युग के राम को समर्पित यह कविता:
शेष है अब भी मानव होना
शेष अब भी होना संस्कार
शेष है सबके मन का रावण
शेष है करना सबका संहार
अपूर्ण है मानवता की आस
राम को शेष अभी वनवास
शेष है स्वप्न रामराज्य का
शेष अयोध्या नगरी धाम
शेष सभी की खुशहाली है
शेष है पुरुष का होना राम
जनता को किसका विश्वास
राम को शेष अभी वनवास
शेष हैं अब भी दानव सारे
शेष है जननी का सम्मान
शेष चिता की ज्वालाएँ हैं
शेष है होना परित्राण
है शेष दानवों का विनाश
राम को शेष अभी वनवास
शेष है तम अत्याचारों का
शेष अभी तमहर का उदय
शेष है मिथ्या का साम्राज्य
शेष अभी सत्य की विजय
है क्षितिज तक ही प्रकाश
राम को शेष अभी वनवास
शेष हैं कितने सेतु बनाने
शेष अनेकों लंका-दहन हैं
शेष हैं सुरसाओं की पिपासा
शेष अनेकों कुम्भकरण हैं
शेष है कर्त्तव्यों का एहसास
राम को शेष अभी वनवास
शेष हैं नीतियाँ कल्याणों के
शेष है जानकियों को न्याय
शेष है भावना राजत्याग के
शेष अभी परहित के उपाय
शेष है धर्म में धर्म का वास
राम को शेष अभी वनवास
—– निदाघ