भक्ति जीवन का वह स्वरूप है, जो कई इकाइयों पर मानव जीवन को उचित राह प्रदान करता है। मानव जीवन बहुत हद तक अर्थहीन प्रतीत होता है, यदि उसमें आशा का सामंजस्य ही न हो। आशा, जो सनातन के प्रमुख स्तंभों में से एक है और जिसका गढ़ हमारी भारतभूमि है। भारत जिसकी प्राचीन संस्कृति में इतनी गहनता और शुद्धता है कि वो जीवन के हर पग और उनसे जुड़े हर कारकों को संपूर्ण आदर और कृतज्ञता के साथ स्वीकारना सिखाता है, इसलिए यहाँ देवी-देवताओं के लिए अलग ही प्रेम और उत्साह देखने को मिलता है। दैविक शक्तियों को ऐसे स्वरूपित करना, उनसे भक्ति-भाव से जुड़ना, उनके लिए उत्सव आयोजित करना, यही हमारी विशाल संस्कृति की धरोहर है। इसलिए उनका स्वरूप एक होते हुए भी, उन्हें अलग-अलग रूपों में पूजा जाता है तथा उन्हें अपने जीवन से जोड़ा जाता है।

जीवन के आरंभ से लेकर उसके हर पड़ाव पर एक माँ जिस तरह अपनी संतान के साथ होती है, उसके जीवन निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है, यही कारण है कि हम अपनी देवियों को भी माता के रूप में देखते हैं। वह माताएँ जो हमारा पालन-पोषण करती हैं, हमारी रक्षा करती हैं और हमें जीवन जीने के लिए उचित मार्ग भी दिखाती हैं। शक्ति के इसी स्वरूप को हम माँ दुर्गा के रूप में पूजते हैं।
धार्मिक मान्यताओं में माँ दुर्गा भी बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक है, जब उन्होंने महिषासुर का मर्दन कर संसार को उसके अत्याचारों से बचाया। नौ दिनों के इस युद्ध और दसवें दिन के उसके संहार को ही नवरात्र के महापर्व के रूप में संपूर्ण भारत में मनाया जाता है।
आश्विन माह के शुक्लपक्ष की शुरुआत के साथ नवरात्रि के महापर्व का आगाज होता है। शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर नौ दिनों तक चलने वाला यह महापर्व पूरे भारत में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-पाठ की जाती है। नवरात्र के पहले दिन, घटस्थापना होती है और माँ शैलपुत्री की पूजा आराधना होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पूर्व जन्म में माँ शैलपुत्री का नाम सती था, जो कि प्रजापति दक्ष की पुत्री थी। सती के पिता ने यज्ञ में भगवान शिव का अपमान किया था, जिससे क्रोधित होकर माँ ने यज्ञ की अग्नि में खुद को भस्म कर लिया था और अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया। तब से माँ दुर्गा माँ शैलपुत्री के नाम से जानी जाती है।
द्वितीय दिवस माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनकी आराधना करने से मनुष्य को त्याग, सदाचार और संयम की प्राप्ति होती है। तृतीय दिवस माँ चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। इसी प्रकार चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा, पंचमी के दिन माँ स्कंदमाता, षष्ठी के दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है और इसी दिन से बंगाल में दुर्गा पूजा की असली रौनक दिखती है। महासप्तमी के दिन माँ दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है। महाअष्टमी के दिन माँ महागौरी की आराधना की जाती है और नवरात्री के अंतिम दिन (आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी) के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा आराधना के साथ दुर्गा पूजा संपन्न होता है।

देश भर में यह पर्व अलग-अगल तरीक़ों से मनाया जाता है, साथ ही साथ अलग-अगल नामों से भी जाना जाता है। उत्तर-पूर्व भारत यानि पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश (पूर्व-भाग) और असम में इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। पश्चिमी भारत के राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में नवरात्रि को गरबा और डांडिया-रास नृत्य के साथ बेहद हर्सोल्लाष और आनंद के साथ मनाते हैं। दक्षिण भारत में नवरात्रि दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को कोलू देखने के लिए आमंत्रण करने का समय होता है। ‘कोलू’ एक प्रदर्शनी है, जिसमें कोलू और तेलुगु में बोम्मला-कोलुवु कहा जाता है। सनातन धर्म में योग, तंत्र और मंत्र साधना के लिए नवरात्र काल से बढ़कर और कोई अन्य सुअवसर नहीं माना जाता है। नवरात्रि उन त्योहारों में से है, जिसमें पूरा भारत आनंद और उल्लास की धुन में खो जाता है। सब एकजुट होकर जश्न मनाते हैं और माँ के आशीर्वाद को भक्ति भाव से ग्रहण करते हैं।
नौ दिनों की पूजा और दसवें दिन के सम्मेलन का इंतज़ार भक्तों को पूरे साल भर रहता है। माँ दुर्गा को कई लोग कन्याओं के तौर पर पूजते हैं तो कई माँ के तौर पर, और ये दोनों रिश्ता मनुष्य जीवन में बेहद ख़ास होता है। करुणामयी माँ का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव ही बरसता रहता है, पर नवरात्र के वक़्त में उनका यह प्रेम छलक पड़ता है। इसलिए दशमी के उत्सव के बाद माँ दुर्गा को विदा करना भी बेहद मार्मिक होता है। माँ के मूर्ति को विसर्जित कर इस महोत्सव का समापन किया जाता है।

दुर्गा पूजा का यह त्योहार शक्ति, आस्था, समर्पण और खुशी का पर्व है। पश्चिम बंगाल में इसकी अलग ही रौनक होती है, जिसे देखने के लिए विदेशों से भी लोग एकत्रित होते हैं। नवरात्रि के महत्व को देखते हुए यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) ने २०२१ में इसे “मानवता की अभूतपूर्व संपदा” में सम्मिलित किया है। आज भारत विश्व को अपनी संस्कृति, विचार और भाईचारे के भाव से अवगत करा रहा है, साथ ही चेतना और परस्पर सहयोग का भी उपदेश दे रहा है। माँ का आशीर्वाद पूरे जगत पर बनी रहे, यही हमारी कामना है।
सभी भक्तजनों को नवरात्रि की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
