साहिलों से दूर, तूफ़ानों में आ गया
मंज़िल का मुसाफ़िर, महफ़िल में आ गया
चिलमन हटाने आज वो आए हैं
इस प्यासे के पास कैसे कुआँ आ गया
शराब तो मुझे चढ़ती ही नहीं
वो तो तुम सामने थे तो नशा आ गया
सितारों के सुकून में ख़लल पड़ गया
चॉंद जो आज मेरे हुजरे में आ गया
तासीर जिनकी गर्म कोयले सी थी
उनको अँगीठी मिली तो मज़ा आ गया
मगर, कॉंटो भरे गुलाब की तलब अच्छी नहीं
हमने चूमा तो, होठों से ख़ून आ गया
इस शहर में दिल-जलों की कमी क्यों नहीं
जब बेवफ़ा से वफ़ा की तो समझ आ गया
उनके बदन से लिपटे लिहाफ़ थे हम
फिर हमारे दरमियॉं ये कौन आ गया
मज़ा तो अकेले सफ़र में ही था
इस क़ाफ़िले में न जाने मैं क्यों आ गया
मेरी ही नहीं, ख़ता उसकी भी है
बता देता.. कि मैं ग़लत पते पे आ गया
ख़ुदा मु’आफ़ करे मुझको…वो मेरी बाहों में था
जब उसके शौहर का फ़ोन आ गया