मेरे जीवन में सबसे नायाब, सबसे बेमिसाल,
गुज़रे हैं कॉलेज के ये चार साल।
फर्स्ट ईयर में सीनियर्स नाइंटी मरवाते थे,
पर कहीं बाहर दिखे तो पेट पूजा भी खूब कराते थे।
दूसरों के प्रति मन में सेवा भाव जगाया,
और कदम प्रयास इंडिया की तरफ़ बढ़ाया।
वहाँ के बच्चों के चेहरे पर शिक्षा की एक मुस्कान खिली,
जिसे देख मेरे हृदय को तसल्ली मिली।


जब आया सेकंड ईयर
मुर्गे से बन गए हम टाइगर।
हम भी थोड़ा अकड़ने लगे थे ,
क्योंकि बच्चे हमें भी अब सर कहने लगे थे।
थर्ड ईयर में सीनियर्स की रैगिंग कम हो गई थी,
या यूँ कहूँ तो अब इन सब की आदत-सी हो गई थी।
अब बिदाई ( फेयरवेल) की थी बारी,
हमने जमकर की थी तैयारी।
सब सीनियर चले गए
और देखते-देखते हम फाइनल ईयर में आ गए।
जो तीन सालों में नहीं किया
वो सब आखिरी साल में किया,
आज भी मुझे याद है कॉलेज का पहला दिन जब एक डर-सा लग रहा था यहाँ आने में,
और अब कॉलेज के इन आख़री दिनों में दर्द-सा हो रहा है इसे छोड़ जाने में।
–अंकित सिंह जडेजा
रासायनिक अभियंत्रण
सत्र २०१६
now am really missing my college, loved it dude
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