ये आँखें, ये नयन और न जाने क्या-क्या,
कभी ये इतनी बार झपकती है कि
जिसका इंतज़ार रहता है,
जिस खुशी का, वह एक ही बार में पा जाते हैं।
कभी यह ऐसा खेल खेलती है कि
चाहते हुए भी झपकती नहीं।
टकटकी लगाए हुए ये निगाहें उस
रास्ते की तरफ़ देखते रहती है।
कभी ऐसा स्वांग रचती हैं कि,
हम कठपुतलियां वो देख लेते हैं,
जिन पर कभी भरोसा ना किया जा सकता।
खुशी में ये आँखें भिगोती हैं,
अजब-गजब है इनका रेल-पेला।
गम की तो ये संगिनी होती है।
जहाँ वे, वहाँ ये।
गम तो इन चलते-फिरते राहगीरों की ऐनक होती है,
हम इनमें अपनी असलियत से गुफ्तगू करते हैं।
कभी यही आँखें ऐसी रचना रचती हैं कि,
मन इनकी इस सदा बहार यौवन की सुंदरता को निहारने का करता है।
कौन हैं ये नैन? कैसे हैं ये नैन?
नैनों की भाषा नैन ही जाने और इनके दीवाने!
– आकांक्षा इरा
असैनिक अभियंत्रण
सत्र- २०१९
बी.आई.टी. सिंदरी