सावन के हैं मौसम
पर सूखे हैं खेत सारे
बादल को देख
आ रहे,
आँखों में ही पानी सारे
किसकी करूँ पूजा ?
किसे दूँ मैं दुहाई ?
खुदा ही आज तो
कर रहा है रुसवाई
क्या हुई भूल हमसे,
जो बरसा रहा ऐसा कहर ?
देख के लगता है
अब बस
चाहिए खाने को ज़हर।
खुद की भरूँ पेट,
या मिटाऊँ औरों की भूख
बादल बरस रहे अधूरे
फसल रहे हैं सूख।
उधार कितने,चुकाऊँ कितने कर्ज ?
कि निजात मिले समस्याओं से
हो जाएँ सबके मर्ज।
सूझता न पथ कोई
खुदकुशी ही बची
अब तो
आखिरी राह चलने को
दफ़्न कर दे इस माटी में
अब और नहीं बचा हूँ जलने को।
ये कैसा निकला सावन
जो दे गया सूखा
फिर आँसू पीकर ही रह जायेगा
बेचारा,कई दिनों से है भूखा।
अब ना बयाँ कर पाऊँगा
अपने दर्द के आलम को
जा रहा हूँ ख़ुदा से मिलने
यह सुनिश्चित करने
की अगली बार
खुशहाल बरसता सावन हो
खुशहाल बरसता सावन हो|
आदित्य देवराज
रसायनिक अभियंत्रण
तृतीय वर्ष
Likhte rahiye….kisaano ke dard ….aaj tak kaun samajh paayaa…..aisi kasamkash hai ki use jahar bhi nahi mil paataa hai.
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