​२४ का १४

१० का ९

१५ का ५६

१४ का ३४…..

चार साल के कमरों को गिनने के लय में,
मैं अपने कॉलेज की आखिरी दिने गिन रहा था।

दिन जैसे शून्य में गुज़र रहे थे।।
कॉलेज ऐसा नशा बन चुका था,
जिसे छोड़ने का मन नही कर रहा था।

बी.आई.टी का हर कोना जैसे कह रहा था,
“राय, तुम यहाँ थे !”


आज कॉलेज के मुख्य दरवाज़े अंदर के बजाए बाहर की ओर खुल रहे थे।
फिर मैंने खुद से सवाल किया कि “इन चार सालों को एक वाक्य में बयाँ कर पाओगे??”
(दैट्स प्रीटी टफ….)

 

फिर मैंने अपनी हथेली की ओर देखा – अगर मैं अंगूठे को अंदर की तरफ मोड़ दूँ और बाकी उंगलियों से उसे ढक दूँ तो,
“मैं वो अंगूठा होऊंगा और ये ‘चार उंगलिया’ मेरे कॉलेज के चार साल।”
– राय सिंह सामद , उत्पादन अभियंत्रण , 2014 बैच

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