​​ये चिट्ठी नहीं मेरा पैगाम है ,

मेरे दोस्तों को मेरा सलाम है  ।
बीत गई जो, वो शाम है …ठहाकों की वो रातें ,

याद आती वो बिन लॉजिक वाली बातें…
कोई क्लास के लिए चप्पले घिसता था
कोई रूम में पेन से कॉपियों पे चीसता था,
ओपीनियंस इतने अलग होने के बाद भी ,
गज़ब का हम सबके बीच एक रिश्ता था ।

मेस की चिड़चिड़ाहट से लेकर

Fma वाले की गुर्राहट तक

धूप में viva देने से लेकर
Atm में ac की राहत तक
MG की कॉफ़ी
टिंकू भैया की दुकान की टॉफी

वो जड़ी बूटी का स्वाद और मंदिर का प्रसाद
दोस्तों से हुई कभी मीठी खटास

प्लेसमेंट में मिलती बेल्ट की मिठास
सब याद आ रहा है ।


समय की आंधी में,तस्वीरों में जम जाएंगे धूल …
दुआओं में याद रखना ,कोई जाना हमें न भूल।

राहुल रंजन, संगणक विज्ञान, 2014 बैच

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