न बेटी बोलते वक़्त तुम्हारी जुबान लड़खड़ाएगी,
न मेरी जिस्म टटोलने में तुम्हें लाज आएगी ,
वो हादसा याद करके मेरी रूह काँप जाएगी
पर बगावत में बढ़ते कदम रुक जाएंगे।
क्योंकि घर की इज़्ज़त जो हूँ मैं!
आगे आयी तो कुचल दी जाऊँगी।
नियत तुम्हारी खराब होती जाएगी ,
पल्लू मेरा संभलता जाएगा ,
किसी दिन जो घूँघट फिसल गया मेरा,
तुम्हारी मर्दानगी की भेंट चढ़ जाऊँगी।
पर घर की नाक हूँ न मैं,
आगे बढ़ी तो काट दी जाऊँगी।
सौ बार चौसर में हारी जाऊँगी
सौ बार महफिल में घसीटी जाऊँगी।
जो तुम्हारी असलियत बतानी चाही
तो मैं चरित्रहीन कहलाऊंगी।
लेकन मैं एक औरत हूँ
ये राज़ भी अपने आचँल में
दबा के रह जाऊँगी |
शुभदा मांडवी
कण वैद्युतकी एवं दूरसंचार अभियंत्रण
सत्र-2019

Sad, but still realistic. Very good.
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