दुर्गा का रूप है वो, शक्ति का स्रोत है
गंगा-सी पवित्र है वो, निर्मल निर्दोष है
हर पल सवालों से घिरी, संयम की मूर्ति
हर दर्द जो हँस कर सह ले, ऐसे प्यार की आकृति।

एक औरत का है हर रूप निराला,
बेटी से माँ बन कर है जिसने पूरे परिवार को सँभाला।
आखिर कबतक उसे नीचा दिखाएँगे हम,
दुर्गा की पूजा कर, उसी पर हाथ उठाएँगे हम।
कहीं तो लोग माँ के पैरों को छूकर उनका आशीर्वाद लिया करते हैं,
तो कहीं एक लड़की को छूकर उसे शर्मिंदा किया करते हैं।

अब बस! क्यों न औरत को दुर्गा का दर्जा दें।
उसे प्यार से पहले इज्ज़त अदा करें।
चढ़ावे में जब प्रसाद नहीं, सर उठा कर जीने का अधिकार रहेेगा
तभी सही मायने मे इस देश में दुर्गा पूजा का त्योहार मनेगा।

अनिशा अरुणिमा
उत्पादन अभियंत्रण
सत्र २०१८
बी•आई•टी• सिंदरी

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