“सर्जना पत्रिका देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई इसके भविष्य को लेकर आशान्वित हूँ ।  इस तरह के प्रयासों को दूर-दूर तक पहुँचाना चाहिए और साहित्य के साथ गंभीर सम्बन्ध बनाते हुए अन्य विषयों की भी एक बड़ी बिरादरी होनी चाहिए । इसके लेखक और पाठक दोनों की बृहत्तर मानसिक दुनिया बनेगी । ”  ( ३१वाँ अंक )

― कुँवर नारायण (पद्मभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार)