IIT और NIT के सदमे के मार ने,
ला फेंका हमें BIT के द्वार पे।
जिस जंगल में आना ना चाहते थे कोई अपने घर द्वार से,
रो रहे है आज, सब उसी जंगल के प्यार में।

1st Year

हर किसी के मन में होता था रैगिंग का डर,
सोचते थे, कब मौका मिले और भागें हम घर।
9mm और 90 का ऐसा खौफ छाया था,
नाई ने हॉस्टल के बाहर ओवरटाइम पहरा लगाया था।
जब भी हमें किसी सीनियर को करना होता था पार,
कान तैयार रहते थे सुनने को, “रेे फर्स्ट ईयर, चल 90 मार”।
दिन गुजरते हैं और FOYC/फ्रेशर्स की बारी आती है,
रैगिंग का डर उसके बाद थोड़ी कम-सी हो जाती है।
दोस्ती की मज़बूती कुछ ऐसे बढ़ाई जाती है,
एक अकेला 15 की proxy मार आता है।
हर दिल में होती है टॉपर बनने की हसरत,
किताबों से नहीं मिलती है उनको फुर्सत।
जैसे-जैसे एग्जाम का दौर पास आता है,
कोई पास तो कोई टॉप करने की आस लगाता है।
जो टॉप करते हैं, वो खुश तो हो जाते हैं,
परन्तु 35 की सरहद just पार करने वाले, ज्यादा खुश नजर आते हैं।

2nd Year

सीनियर बनने का अभिमान सब में होता है,
मेन गेट का अब हर रोज़ भ्रमण होता है।
दोस्त बँट जाते है अनेकों ग्रुप में,
हर कोई नजर आता है, नए-नए लुक में।
पढ़ाई में मन नहीं लगता किसी का,
जूनियर बनाते जर्नल्स सभी का।
हर किसी को लगता है, कि उसे प्यार हो गया,
उफ्फ! अब तो जीना भी दुश्वार हो गया।
होश जब आता है तब खूब चिल्लाते हैं,
खुद के साथ हुआ सब, जूनियर्स पर आजमाते हैं।

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3rd Year

यहाँ से फ्यूचर की चिंता होती है गुरु,
क्योंकि प्रिप्लेसमेंट से नौकरी का दौर होता है शुरू।
पर जब भी कभी पढ़ने की बात आती है,
कमबख़्त, उसकी याद हमें भ्रमित कर जाती है।
नई-नई चीज़ें सीखने का जोश आता है,
कोई PLC तो कोई SCADA पर हाथ आजमाता है।
अटेंडेंस शून्य की ओर अग्रसित हुए जाती है,
सेशनलस में मार्क्स लाने की तकनीक विकसित हो जाती है।
खै़र इस वक़्त डिप्रेशन भी अच्छा रुख दिखाता है,
परन्तु, मंडल दुकान में हर कोई सुख पाता है।

Final Year

फाइनल ईयर दोस्तों में फासला बढ़ाता है,
हर कोई टेंशन में नज़र आता है।
क्योंकि आगे क्या करें, समझ नहीं आता है,
भविष्य का सोच हर कोई घबराता है।
इंतज़ार खत्म होता है, प्लेसमेंट का दौर आता है,
हर कोई खुद के लिए फ़रियाद लगाता है।
कुछ की फ़रियाद पूरी होती है, तो कोई निराश रह जाता है।
परन्तु इन ठोकरों से हर कोई अनुभवी भी हो जाता है।

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आगे…
आगे जो हमने सोचा था, सब CORONA ने बिगाड़ दिया,
उठा कर सबको, घर-रूपी पिंजरे में डाल दिया।

बस प्रार्थना है भगवान से कि मिलकर बिछड़ने का सौभाग्य प्राप्त हो,
हर किसी को, रोने के लिए दोस्त का कंधा प्राप्त हो।
उस एक दिन में भी हम ऐसी यादें बना जाएंगे,
कि ये 4 साल उसके सामने, बहुत छोटे नजर आएंगे।

अभिषेक रंजन तिवारी (ART)
वैद्युतिकी अभियंत्रण
सत्र २०१६

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5 thoughts on “बिछड़ जाएँगे…..पर मिलने के बाद

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