जब से मैंने होश संभाला है, तब से मैंने अपने घर में गाय, कबूतर, तोते, कुत्ते आदि जानवरों को घर के सदस्यों की तरह देखा है। मेरे घर के सभी लोग पशु-प्रेमी हैं, उन्हें घर के सदस्यों की तरह रखते हैं। गाय तो हमारे घर में शुरू से ही थी,जिसकी देखभाल मेरे दादा, पापा और घर के सभी लोग करते आए हैं। मेरे भैया को कुत्ते पालने का शौक था। उन्होंने एक कुत्ता पाला था जिसका नाम ‘टाइगर’ रखा गया था। वे उसे साबुन और शैम्पू से नहलाते थे, उसे बिस्कुट खिलाते थे। एक दिन अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई, उसी समय ज़ोरदार बिजली चमकी और टाइगर उसकी चपेट में आ गया और उसकी मौत हो गयी। इस तरह के कई किस्से हैं हमारे घर और जानवरों से जुड़ी।
मैंने तो अपने घर में अब तक गायों की तीन पीढ़ियों को देखा है पर ‘डोलू’ की बात ही कुछ और थी। डोलू का जन्म 7 दिसम्बर 2010 को हुआ था। गाय के बछड़े को देखकर मैं बहुत खुश हुआ। हम सभी भाई-बहन उसके साथ खेलते थे। हम उसे प्यार से, ‘भुटुकुली’ तो कभी ‘डोलू’ कहते थे। डोलू हमेशा अपनी माँ के पास ही रहता था। जब पापा गाय का दूध निकालते तब मैं डोलू को पकड़कर रखता था,इसी तरह हम दिन भर मस्ती करते थे। डोलू को ठंड से बचाने के लिए हम उसे बोरे और पुराने चादर से ढक देते थे। डोलू के जन्म के 22 दिन बाद ही उसकी माँ की तबीयत खराब हो गई, पापा ने शाम में डॉक्टर को बुलाया, डॉक्टर ने गाय को सूई दिया और कहा अगर 8 घंटे के अंदर सूई का असर हुआ तो वह बच जायेगी। हमलोग उसके ठीक होने का इंतज़ार करने लगे। रात में गाय के पास बोरसी रखी गई। काफी रात हो गयी थी इसलिए मैं सोने चला गया। अगली सुबह उठा तो देखा डोलू की माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। हम डोलू को उसकी माँ के पास नहीं ले गए। 9 बजे कुछ लोग आये और उसकी माँ को दफ़नाने के लिए ले गए।
मेरी मंझली दीदी को जानवरों से बहुत लगाव था, वो डोलू को बोतल से दूध पिलाती। डोलू छोटा था इसलिए वह अच्छे से दूध नहीं पी पाता था, फिर भी किसी तरह दीदी ने उसे पिलाया। फिर दीदी उसे घर के पीछे खुली जगह पर ले गयी जहाँ उसकी माँ ने अंतिम साँसें ली थी। डोलू की नज़रें अपनी माँ को खोज रही थीं, वह इधर-उधर दौड़ कर अपनी माँ को ढूंढ रहा था। यह दृश्य देखकर मेरी आँखे भर आयी। जहाँ उसकी माँ ने आखरी साँसें ली थी, डोलू वहाँ जा कर वहाँ की मिट्टी चाटने लगा। एक बछड़े और उसकी माँ के प्रेम का यह दृश्य आज भी मेरे दिल को झकझोर देता है।
उसकी माँ की मौत के बाद मेरी दीदी ही उसकी माँ बन गई थी। वह रोज़ सुबह उसके पास जाती, उसके कोमल शरीर पर हाथ रखकर प्यार से सहलाती। डोलू भी प्यार से मेरी दीदी के हाथों को चाटता था। दीदी रोज़ उसे बोतल से दूध पिलाती, उसे बारली खिलाती, उसको कंघी करती थी और उसे नहलाती थी। मेरी दीदी की यह दिनचर्या बन चुकी थी। वह अधिक से अधिक समय डोलू के साथ ही बिताती थी। एक दिन की बात है दूध के बोतल का निप्पल फट गया था, उस दिन बारिश भी हो रही थी। सुबह-सुबह दीदी ने मुझे उठाया और तेज बारिश में ही निप्पल लाने को भेज दिया। जब तक मैं निप्पल ले कर नहीं आया तब तक दीदी ने कुछ नहीं खाया।
डोलू भी अब हमलोगों के साथ घुलमिल गया था, अब तो वह अपनी माँ को भी नहीं ढूंढता था। हम उसे कभी अकेला नहीं छोड़ते थे। जब हम टी.वी देखते थे तब वह भी पलंग के बगल में जमीन पर बैठकर टीवी देखता था। मेरी माँ जब भजन सुनती थी तो वह भी भजन सुनता था । घर में खाने के लिए कुछ भी अच्छी चीज़ आती तो दीदी उसे भी खिलाती थी। वह हमारे घर का एक अभिन्न सदस्य बन चुका था। मेरी माँ जब पूजा करती, तो पहले उसे ही प्रसाद खिलाती थी। डोलू ने चारों धाम का प्रसाद खाया था, उसे इतना प्यार मिला जितना दूसरे जानवरों को नहीं मिला होगा। हमने उसे कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी।
डोलू जब बड़ा हुआ तो घास खिलाने के लिए पापा उसे खेत मे छोड़ आते थे,वह खेत में घास के साथ-साथ वहाँ पड़ी पॉलिथीन की थैलियाँ भी खा लेता था। उसकी यही दिनचर्या बन गयी था। जब वह घास खाकर आता, तब दीदी उसको कंघी करती,वह भी प्यार से सिर हिलाता । डोलू की एक अजीब आदत थी जब वो किसी साड़ी पहनी औरत को देखता तो वो उसे मारने दौड़ता, उसने मेरी माँ को भी कई बार मारा था, मुझे यह पता नहीं चला कि वह प्यार से इस तरह करता था या गुस्से में।
2014 में वह चार साल का हो गया पर यह साल उसके और हमारे लिए बहुत ही ख़राब रहा। 2014 का अंत बहुत ही दुखद हुआ। 29 दिसम्बर को डोलू की तबियत खराब हो गयी, उसका पेट टाइट हो गया था। उस दिन पापा भी घर पर नहीं थे, हमलोगों ने सोचा अगले दिन जब पापा आ जायेंगे तब डॉक्टर को दिखा देंगे पर हमें नहीं मालूम था कि डोलू के लिए अगली सुबह नहीं होगी। सुबह जब मैं उठा तो माँ ने बताया हमारा डोलू अब इस दुनिया में नहीं रहा। माँ की ये बातें सुनकर डोलू के जन्म से लेकर उसके बड़े होने तक की तस्वीरें मेरी नज़रों के सामने घूमने लगी और आँखों से आँसू बहने लगे। दीदी को तो जैसे सदमा ही लग गया था। वह रोये ही जा रही थी और डोलू को उठने के लिए कह रही थी। वह दृश्य देखने की शक्ति मुझमे नहीं थी इसीलिए मैं वहाँ से चला गया। जो लोग डोलू को ले जाने के लिए आये थे उन्होंने बताया कि डोलू के पेट में पॉलिथीन जमा हो गया था इसीलिए उसकी मौत हुई । उस दिन हमारे घर में खाना भी नहीं बना था। मेरी दीदी तो डोलू की याद में बहुत दिनों तक उदास रही। आज भी हमसब उसको याद करते हैं। उसने अपने छोटे से जीवनकाल में हमें बहुत सिखा दिया था।
यह एक सच्ची घटना है जो 2010 से 2014 के बीच मेरे घर में घटी है। इसमें कुछ भी काल्पनिक नहीं है। मैंने इस सच्ची घटना को एक कहानी का रूप दे दिया है ।
(इस घटना/कहानी के माध्यम से मैं यह बताना चाहता हूँ कि आज हम पढ़-लिखकर भी मूर्ख हैं। लोग जहाँ-तहाँ पॉलिथीन फेंक देते हैं, यह भी नहीं सोचते कि उन बेज़ुबान जानवरों पर क्या बीतती होगी।)
– पियूष राज
असैनिक अभियंत्रण
सत्र- २०१७
बी.आई.टी. सिंदरी
Very heart touching a real story and surely gives us a lesson about single use plastic.
Thank you for sharing this, it indeed touched our heart
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