जंग के मैदान में लाल था,
बेचारी माँ का हाल बेहाल था।
उसकी एक झलक को तड़पती
पर लाल पर देश की रक्षा का भार था।
माँ का दर्द हवाओं ने उस तक पहुँचाया,
“कैसा निर्मोही है तू!”
उन फिज़ाओं ने उसके कानों में बुदबुदाया।
नम तो उसकी भी आँखें थी,
उसने भी अपना दुखड़ा सुनाया।
“एक माँ के लिए दूसरी माँ को छोड़ आया हूँ,
इस बेटे से इसकी तकलीफ मत पूछो
अभी-अभी अपनी माँ को आखिरी खत लिख आया हूँ।
बस चंद साँसें बची हैं मेरी,
पर देश से किया वादा पूरा कर आया हूँ।
थोड़ा खुद रंगा हूँ,
थोड़ा अपनी मिट्टी को अपना रंग दे आया हूँ।”
सुन कर यह किस्सा आसमान भी रोया था
आज फिर एक माँ ने अपना लाल खोया था।
माँ की आँखें अचानक भर आयी थी,
हवा उसके दरवाज़े पर दस्तक देने आयी थी।
“मैं वापस आ गया माँ !” ये सुनने को वो भागी आयी,
पर बस तिरंगे में लिपटा हुआ लाल को ही देख पायी।
नाम – शुभदा माडंवी
शाखा – कण वैद्युतिकी एवं दूरसंचार अभियंत्रण सत्र- २०१९, बी.आई.टी. सिंदरी
Poignant and passionate. 👌 👌
LikeLike