उन नन्हें कोमल उंगलियों में
उलझे वो कलम साफ थे,
उस छोटी-सी उलझन को
सुलझाने वाले आप थे,
गुरुवर वो आप थे।
‘अ’ अक्षर पर दौड़ते, रहते, लड़खड़ाते
कर साफ थे
थरथराते हथेलियों को
थामने वाले आप थे,
गुरुवर वो आप थे।
मुख से निकलते वो
टूटे-फूटे शब्द साफ थे,
पर शब्दों की अहमियत
बतलाने वाले आप थे,
गुरुवर वो आप थे।
हाथों पर बरसते डंडे
डंडे के बोल साफ थे,
मानवता की मूरत रचनेवाले
वो मूर्तिकार आप थे,
गुरुवर वो आप थे।
बुराई की दलदल में
फंसते चरित्र साफ थे,
अच्छाई के फुहारों से
भिगोने वाले आप थे,
गुरुवर वो आप थे।
कृपादृष्टि की रोशनी में
हाथों की लकीरें कितनी साफ हैं,
इस सुन्दर जीवन को
सफल बनाने वाले आप हैंं,
गुरुवर वो आप हैैं।
भविष्य की रणभूमि पर
दौड़ते हमारे रथ के
सारथी- गुरुवर
आप हो,
हम सभी के
‘कृष्ण‘ गुरुवर आप हो।
शशि कुमार
उत्पादन अभियंत्रण
सत्र- 2011