इस कमरे का एकाकीपन
तन्हा है यह मेरा मन
इस अंधियारे में तेरी याद
यादों के दीप जलाती है,
माँ, याद तुम्हारी आती है।
पास के छत पर माँ कोई
गोद के मुन्ने में खोई,
कोमल थपकी दे-देकर
जब लोरी कोई सुनाती है,
माँ! याद तुम्हारी आती है।
जब गर्म तवा छू जाता है
हाथ मेरा जल जाता है,
या तेज धार की छूरी से
ऊँगली ही कट जाती है,
माँ! याद तुम्हारी आती है।
हाँ, तुम से मेरी दूरी है
कुछ ऐसी ही मजबूरी है,
देर रात तक बिस्तर पर
जब नींद मुझे न आती है,
माँ! याद तुम्हारी आती है।
कुछ बड़े सही मेरे अरमाँ
पर बुरा नहीं मैं, मेरी माँ
क्यों बार-बार तू रो-रोकर
दिल के टुकड़े कर जाती है?
माँ! याद तुम्हारी आती है।
जब मुखड़ा तेरा हँसता है
मुझे कितना अच्छा लगता है,
इक दिन तुझे हँसाउँगा
आवाज यह दिल से आती है,
माँ! याद तुम्हारी आती है।
~स्व० राहुल कुमार
यांत्रिकी अभियंत्रण , सत्र २००५
सर्जना २७वें अंक में प्रकाशित
Bahut achhi kavita
LikeLike
खुबसूरत विवरण
LikeLike