यादों के पन्नों को
पलटने जा रही हूँ।
ज़िन्दगी के उन लम्हों को
क्या आसान होगा दोहराना?
कोशिश हुई,
इन चार सालों को कलमबद्ध करने की,
पर चन्द पंक्तियों में सार्थक न हुआ…यह सफ़र…
इसलिये कल्पना को स्याही में समेट रही हूँ,
एक पल ठहरना
मेरे संग, तुम भी
और
सोचना
वो 28 मई का दिन कैसा होगा?
हाँ, वही 28 मई…
यहाँ आखिरी सुबह होगी न?
कैसी होगी?
सवेरे उठेगें हर दिन की तरह
वो धूप भी खिल कर छा गयी होगी
सुनहली धूप में निल्हाते हुए
एक चिड़िया अभी अभी गा रही होगी।
गरमाई, मिठास, हरियाली, उजाला
से लबालब, वह सुबह बेहद खास होगी!
या हो सकता है !
मई के उस सुबह में कुहरा छाया होगा
प्रसृत सन्नाटा होगा
पंछी चुप होंगे।
सबकी आँखों में
एक बुझा सूनापन जमा होगा
और फिर भी बेहद खास होगा।
और फिर उस रात का क्या ?
रात के अंधकार में
वह अकेलापन, वह अचकचाहट
वह असमंजस, अकुलाहट
आर्त अनुभव
वह तलाश , वह द्वैत
असहाय , विरह- व्यथा
क्या हम समेट पायेंगे?
यूँ सवाल करना व्यर्थ है मेरा…
पर क्या हम विदा ले पायेंगे?
इतनी बड़ी अनजानी दुनिया में
यह छोटा-सा पहचाना क्षण
समेटेने लगेंगे सामानों संग।
उन अविराम पलों को सहेजते हुए
सम्भालते हुए काँच के बर्तनों-सा,
क्या आँसू पलकों की आड़ में छिपा पाएँगे?
ये अपनापन, ये अजनबियतें
ये किलकारियां और लड़ाईयाँ
मस्ती और ढेर सारे गुफ़्तगू
क्या-क्या बांधेंगे?
क्या किसी को भी छोड़ पाएँगे?
परीक्षा के उस 3 घण्टों में
पेपर पर ध्यान भी होगा?
यूँ तो परीक्षा खत्म
होने का इंतज़ार रहता आया
पर
वो आखिरी पेपर के आवरण में
कलम घसीटेंगे, पर कितना समेटेगें?
हरियाली की चादर ओढ़े कैंपस
की हरेक सुनहरी सुबह और
ढलती रंगीन साँझ।
बेकर्स पॉइंट की रौनक,
और अभी अभी नई कैंटीन
के तेवर देख, बढ़ती उसकी चिढ़न।
ऑन्टी का डोसा या दार्जीलिंग का मोमोस
वर्तिका की मीटिंग या गोलगप्पे और झाल मुढ़ी पर मिलनोत्सव,
सीनियर्स को लूटना और फिर सीनियर्स बनने पर बचना।
ए.टी.एम का आउट ऑफ सर्विस रहना
कॉफी के दुकान पर महफ़िल सजाना
कुटुम्ब को गरियाते हुए फिर जश्न वहीं मनाना।
मेन गेट को सजाने वाले हरेक कण-कण समेटने लगेंगे… पर कितना ही समेट पाएँगे?
गार्ड अंकल से
नकली लॉक वाली सायकिल की रखवाली।
एडमिन में ओ डी सी के लिए परेशान किये जाने वाले अंकल पर तानाशाही।
कैन्टीन में ठक्कर और बेकर्स की साझेदारी
और हर शाम को महफ़िल सजाने की उनकी जिम्मेदारी।।
लाइब्रेरी के बाहर बुलेट को ताड़ना,
पेड़ के नीचे हाई स्पीड नेट के लिए बैठना,
प्लसमेन्ट ड्राइव के वक्त टैप की रौनक
आँसू से लिपटे या बेल्ट की तड़तड़ाहट।।
क्लास टेस्ट में चकमा देने की प्लानिंग
सीटिंग अरेंजमेंट्स स्टंट के साथ टीचर पड़े भारी।
क्लास बंक और एवेंजर्स के टिकट्स
हफ़्तों पहले बुक्ड,
फ्रेंड्स सीरीज से आगाज़ कर
गेम ऑफ थ्रोन्स पर समाप्ति।
सीमेंस लैब में घण्टों गुजारना,
मोटर, पी एल सी, जाते-जाते स्काडा पर हाथ आजमाना।
डी. पी. ए. की अनगिनत यादें
खुशियों की लड़ियां हमने संग किये साझे।
सी. 51 का नामकरण
राजेन्द्र प्रसाद ऑडिटोरियम का अद्भुत उद्घाटन।
वर्कशॉप वाली मंदिर में प्लसमेन्ट पूजा
शिवरात्रि में ओ. पी. वाले मन्दिर में दर्शन-पूजा।
ए ज़ोन में बाइक की सैर,
सी.जी. में रोज नए-नए खेल।
इलेक्ट्रिकल बिल्डिंग है क्लबों का हब,
सोम की शाम सजती मीटिंग्स, मिलते सब।
और वापसी में,
“कहाँ जा रही हो?”
सहजतः ही निकलते दो अक्षर…घर।।
गार्ड वाले अंकल से देर से आने पर सुनना
सॉरी बोलते-बोलते साइकिल को तेजी से घुसा देना।
वर्मा सर के पास रोज नये बहाने संग अंदर घुसना,
मेस वाले भैया से खाने की फरमाइशों से ज्यादा होर्नेट की राइड माँगना।।
और रोज नई रोचक कहानियों
से भरपूर होस्टल।
मेन गेट की कहानी
या क्रश, प्रपोज़, ब्रेकअप, चक्कर- गड़बड़ी
की हर खबर रखे हमारी खबरी।
कभी फॉर्मल न पहनने पर मार
कभी फॉर्मल पहनने की मार
कभी फॉर्मल न होने पर पहनने की मार।
फॉर्मल से शुरुवात हुई
फॉर्मल पर समाप्त हुई
फॉर्मल ने रुलाया
और फॉर्मल में प्रोफेशनल दिखने का दावा किया।
क्लब पार्टी, ब्राँच पार्टी, फैरवैल पार्टी
रोज नई पार्टी , रोज नए ड्रेस
लड़के सीधे-साधे,
दो जोड़ी में आये, दो जोड़ी में जाएँगे।
लड़कियां रंगीन लिबासों में, मेकअप की दुकान लगे
बस में सामान लोड होंगे और फिर भी जगह कम लगेंगे।
पैकिंग चल रही है….
सामान बहुत ज्यादा है
पता नहीं
कैसे ले जाऊँगी?
सन्नाटे से घिरी
अकेले
अपनी ही यादों के सम्मुख निरस्त्र
सारे अपनापन
सुन्न लगने लगे
दूरी की चट्टान
के नीचे।
आँखों की टकराहटें
मुँह लटकाये
अस्पर्श गले लगाते।
बैग ताने
अटैची खींचते
जाने क्या सोचेंगे?
विरह गीत फिर
तिरने लगेंगे आकाश में…
दीवारों पर भी रिसन आ रही होगी,
पर
तुम
छतों पर
कमरों में
लॉबी में
चौराहों पर
वो हँसी-ठहाके पुनः गूँजाते हुए निकलना
बी आई टी का टेम्पो हाई है, दोहराते हुए निकलना।
– श्रुति शुभांगी
कण वैद्युतिकी एवं दूरसंचार अभियंत्रण
सत्र २०1५