रावण द्वारा सीता अपहरण से राम के साथ आर्यावर्त की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी ।सागर लाँघ कर लंका पर चढ़ाई करना जब दुष्कर लगने लगा तब माँ की आराधना करते हुए नर-वानर की मैत्री की शक्ति स्थापित हो सकी।।मां चंद्रघंटा बनी कृपामयी।
रोको माँ यह अत्याचार
तन पर ,मन पर, जन जीवन पर ,
होता यह व्यभिचार,
रोको माँ यह अत्याचार।
अब तो सहन नहीं होता माँ
लंका दहन नहीं होता माँ
कब तक कनक भवन में माता
ठहरेगा तेरा शृंगार ?
रोको माँ यह अत्याचार
थका जा रहा जाप जाप कर ,
रात-रात भर जाग जाग कर
सागर भी अब खौल रहा है ,
कैसे पहुँचूँ इसे लाँघ कर
शिक्षक जैसे जामवंत ही ,
याद दिलाएँ शक्ति |
निश्चय ही तब पैदा होगी हनुमान की भक्ति।
अंजनि पुत्र , मारुति नंदन , सुन ले मेरी पुकार
अब रोको अत्याचार ।
भारत की सीता को भी,
विस्मृत कर रावण हरता है ।
बोलो कब यह मन ,लक्षमण रेखा में बंध कर रहता है !
वन-वन को जो सती हो गयी ,
उस पर भी बद्नियत हो गयी ।।
देखो एक महापंडित का, यह भी शिष्टाचार ।
अब तो रोको अत्याचार ।
माँ तू मेरे निर्बल मन का एक सहारा ।
राज त्याग कर दुर्बल हो गया राम बेचारा ?
तन तो वन वन भटक रहा है ,मन सागर के पार ।
अब रोको अत्याचार।
जाके पैर ना फटे बिवाई ,जाने पीर परायी ।
बहना-बेटी,पत्नी जिसकी लाँछित होगी भाई ,
ऐसे पतितों से निगरानी करते रहना माई ।
खुद से भी संघर्ष करें सागर पर सेतु बनायें ।
माँ शक्ति दो अपनी भूली सीता को अपनाएँ ।
स्वर्णाभूषणों से सजे माँ दुर्गा के दरबार से एक सवाली,
माँ जी क्यों करती शृंगार?
आजू बाजू घात लगाये , बैठे रंगे सियार ।।
माँ जी क्यों करती शृंगार?
लाखों-करोडों के सोने से, सजा हुआ दरबार।
मधुमक्खी के छत्ते जैसा, भक्तों का अंबार।
पंडालों के बाहर भीतर, कुछ वर्दी में कुछ भेष बदल कर,
किससे किसकी रक्षा में , तैनात पहरेदार ?
माँ जी क्यों करती शृंगार ?
माँ देखो दर्शन के खातिर,सज धज कर महिलाएँ आयीं ।
मन में जाने कैसी कैसी लेकर अभिलाषाएँ आयीं।
पल में ही छू मन्तर कैसे , गले का मंगल सूत्र।
एक सुहागन की श्रद्धा को ,नष्ट कर ।
कैसे होगा माँ ऐसे रखवारों पर ऐतबार?
माँ जी क्यों करती शृंगार?
तेरा ध्यान करूँ माता या सोने की इस बाली पर?
तरस आ रही माता ऐसे शेरों की रखवाली पर।
सिंह सवारी करने वाली रक्षा की मोहताज़!
भारत माँ के माथे पर कैसे चमकेगा ताज़?
महिषासुर के छल-बल से है ,सिंह पड़ा लाचार ।।
माँ जी क्यों पहनी हैं बार?
अपना पूत समझ कर माँ , देती रहना संरक्षण ।
किसमें पौरुष है इतना, जो तुझको दे आरक्षण ।
कंगन छोड़ बनाओ अपने हुुनर को हथियार,
रण कौशल से ही बेटी ले पाओगी अधिकार।।
माँ जी क्यों करती शृंगार?
ए के सिंह
सिंदरी शिक्षक सह पत्रकार दैनिक जागरण