हाँ,तू है नहीं
तो क्या, अगर तू है नहीं।
कहने को तो कह दिया, पर
बात इतनी भी साधारण नहीं
रोने को तो रो लिया, पर
आँसुओं की किसी को आदत नहीं।

बहुत सोचती थी
किसी को अपनी सोच बताती,
कि किसी की हमदर्द हमराही बन जाती
पर सोच का कोई हमसफ़र नहीं
शायद इसलिए आज कहीं भी तू नहीं।

काश! तुम उन सात फेरों के साथ दिल के भी पास आते
काश! तुम मेरे गले के धागे पर ऐतबार कर पाते
काश! तुम कुछ बातों में बाहों के पास जाते
काश! तुम मेरे अश्कों को कंधों का साथ दे पाते
पर तुमने तो दिल और जिस्म में फर्क कहाँ समझा
शायद इसलिए तुम और हम साथ नहीं।

गम है जरूर इसलिए कि तुम और हम साथ नहीं
आसां नहीं है, सिंदूर को किसी और का नाम देना
आसान नहीं है, दिल को फिर किसी से जोड़ देना,
पर करूँगी ताकि दुनिया भी जान सके
कि मैं हूँ चाहे तू है…या तू नहीं है।

साक्षी सिंह
असैनिक अभियंत्रण
प्रथम वर्ष

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