“भैया, तुम जल्दी घर आ जाओ, बाबूजी की तबियत फिर से बिगड़ रही है” ,काँपती हुई आवाज़ में सुधा ने अपने भाई रितेश को बताया।सुन कर रितेश बहुत झुंझला उठा, और प्रत्युत्तर में बस “हूँ” कह कर फ़ोन काट दिया। वह खुद में बुदबुदाने लगा, “इन लोगों ने नौकरी और छुट्टी को मज़ाक समझ रखा है क्या! इन्हें क्या पता छुट्टी मिलने में कितनी परेशानी होती है। इतनी मेहनत से घूमने – फ़िरने के लिए छुट्टियाँ बचा के रखी थी, सब अस्पताल में बर्बाद होंगी अब।”
बुझे मन से वह घर गया। डॉक्टर ने बाबूजी के बारे में कह दिया था, कि अब बचने के आसार नहीं के बराबर हैं।
रितेश ने मन ही मन राहत की सांस ली। अब उसे और परेशानी नही झेलनी पड़ेगी।
~पल्लवी झा
विद्युत अभियंत्रण
2017