आँखों में बसा एक ख्वाब लेकर आयी हूँ,

जीवन में अपने कुछ खास करने आयी हूँ,
आप लोगों की इनायत सही रही तो,
इतिहास में दर्ज करवाने अपना नाम आयी हूँ।
क्या बताऊँ इस दुनिया की हालत,
यहाँ तो मुख़्तलिफ़ लोगों  का ही बसेरा है,
जहाँ मैंअपना ख्वाब पूरा करने आयी,
यहाँ तो इंसानियत नहीं, हैवानियत का लगा डेरा है।
रात को घर से बाहर निकलने में डर है,
रिवायत में रह कर घूमना दूभर है,
खुदा ने तो हर शख्स को दिए पर हैं,
फिर भी भेद भाव करना यह तो इंसानो का ही कर्म है।
अपमान मत करना इन नारियों का कभी,
इनके बल पर तो ही यह जग चलता है,
भूल जाते है ये  मर्द जन्म लेकर तो,
इन्हीं की गोद मे ही तो पलना है।
जो ख्वाब आँखों में बसा कर आये थे,
वे  ख्वाब, ख्वाब ही बन कर रह गए,
यहाँ के इंसानो में वह लहज़ा ही नही दिखा,
कि हमारे ख्वाब की पासबान बन सके।
कहने को पापा की परी हूँ मैं,
भैया की रानी हूं मैं,
अगर इंसानो में नही करने का है लिहाज़ तो,
ऐ खुदा कोई मौतज़ा कर हमलोगों पे क़ुरबत की निशानी बनाये रख।
सन्नी केशरी
उत्पादन अभियंत्रण
2017

One thought on “अधूरे सपने

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