पलकें आँसुओं से भीगी थीं,
नज़रें उदासी से झुकी थीं ।
कुछ कहना था अपनों से मुझे
आवाज़ मेरी थोड़ी धीमी थी ।।
कुछ अपने दरवाज़े पर छूट गए,
कुछ अनजाने मेरे साथ चले ।
अब आँसुओं को खुद पोछना था,
साहस बटोर आगे बढ़ना था ।।
हॉस्टल में पहला कदम काँपा था,
कमरे में जाने से मन सहमा था ।
अजनबियों के साथ मुझे रहना था,
भीड़ में भी अकेलेपन को सहना था ।।
इन विचित्र ख्यालों से मन बोझिल था,
पर पता न था कि ये एक बुलबुला था ।
पलक झपकते ही जो ओझल हो गया,
और समय सूरज की तरह ढल गया ।।
कल के अजनबी चेहरे,
आज मेरा एक परिवार है ।
मेरे दिल का एक भाग है,
घर से दूर, एक घर-बार है ।।
न जाने कितनी होली
कितनी दीवाली आयी हैं !
हमने आपस में प्रेम से
एक थाल की मिठाईयाँ खाई हैं ।
अब जब जाने की बेला है,
तो मानो बस की बात है ।
चार दिन में बीत गए चार वर्ष
मन मे ऐसा एहसास है ।।
जा रहें सब यादों को समेटकर,
मिट्टी में अपनी खुशबू छोड़कर,
कमरों से ठहाके हमारे नही आएँगे,
कल सुबह खुद को यहाँ नही पाएँगें।
अब आगे फिर एक नई दुनिया है
जो इससे भी खूबसूरत होगी ।
ये तो आगे की तैयारी है,
अब हमारी असली परख होगी।
~कोमल कुमारी
रासायनिक अभियंत्रण, 2014 बैच
कठोर सत्य।इसी का नाम जिंदगी।
सृष्टि का है नियम कठोर,जिसके हाथों जीवन डोर,
मर्जी उसकी हमें हँसा दे,या काँटों पर हमें चला दे,
हम भी ना कमजोर,चलते जाएंगे,
चाहे मेरे गम चहुँओर, हम मुस्काएँगे,
चलते जाएंगे।।
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