पाँव छूने के लिए जो मैंने अपने सिर को झुकाया, तो वापस उसे उठाने की हिम्मत नहीं हो पाई | हॉस्टल के उस गेट के बाहर वह मेरे और मेरे माता-पिता की वियोग की बेला थी | इतने वर्षों में मैं एक क्षण भी अपने माता-पिता से इतनी दूर नहीं हुई और यहाँ अचानक से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उनसे चार सालों तक अलग रहना मुझे भयभीत कर रहा था | बी.आई.टी सिंदरी में दाखिला पाने की खुशी में कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं गया कि इसके लिए मुझे उनसे दूर होना पड़ेगा|
हॉस्टल के गेट के उस पार मेरे नए जीवन की शुरुआत होने वाली थी और जीवन के उस नए सफर में मैं अकेली मुसाफिर होने वाली थी |
मन में उमड़ रहे अनगिनत भावों को अपने अंदर समेटते हुए मैंने एकाएक अपना सामान उठाया और गेट के अंदर वेग से चली गई | न मैंने जाते-जाते अपने माता-पिता से कुछ कहा और ना ही उन्होंने पीछे से मुझे कुछ कहा | जरूर मेरी तरह उनके भी गले में भाव की पड़ी गांठ शब्दों को मुंह तक आने से रोक रही होगी|
अपने जेब से कागज निकाल कर मैंने अपना निर्धारित रूम नंबर चेक किया | बाकी लड़कियों की अपेक्षा मेरे रूम नंबर में संख्या की जगह दो अक्षर लिखे हुए थे , सि.आर | जब मुझे इन दोनों अक्षरों का मतलब मालूम हुआ तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई | रूम के बजाय मुझे कॉमन रूम आवंटित किया गया था | इस बात के झटके से मैं उभर भी नहीं पाई थी कि मुझे मालूम हुआ कि उस रुम में मेरे साथ चौदह और लड़कियां भी रहेंगी | कॉलेज शायद लड़कियों की तादाद के इस बढ़ोतरी के लिए तैयार नहीं था और ना मैं चौदह अंजान लड़कियों के साथ रूम शेयर करने के लिए | मैंने उस बड़े से कमरे के कोने में पड़े बेड को अपने लिए चुना और अपना सामान जमाने में जुट गयी | बिन बोले ही कुछ लड़कियां मेरी सहायता के लिए आ गई और मेरा काम मिनटों में निपट गया |
जहां सारी लड़कियां आपस में बातचीत कर मेल-मिलाप बढ़ाने की कोशिश कर रही थी , मैं चुपचाप अपनी किताब पढ़ रही थी और न जाने कब आँख लग गई | सुबह जब सूरज की रोशनी से नींद टूटी तो तकिये को अपने सिरहाने पाया , चादर को अपने ऊपर और अपने किताब और चश्मे को टेबल के ऊपर | बाकी लड़कियां मुझसे पहले उठ चुकी थी और मुझे जागता देख ‘ गुड मॉर्निंग ‘ से मेरा अभिनंदन किया | मुस्कुराते हुए मैने भी उनका अभिनंदन किया |
तब एहसास हुआ कि यह मेरे घर से दूर एक नए घर की पहली गुड मॉर्निंग की शुरुआत है |
-काजल कुमारी
रासायनिक अभियंत्रण, अंतिम वर्ष