आग वो हाथों में लगा के चलता है
छूता है जिसको जला के चलता है
करता ही रहा है सिफारिश झूठ की
फिर भी देखो सर उठा के चलता है
हुआ है पैगम्बर तारीकियों का अब
चराग वो घरों के बुझा के चलता है
जमीर जिसने बेच दी और क्या करे
वो इसलिए नज़र झुका के चलता है
उसे रास नहीं आए गुलों की बहार
तो चमन में गुबार उड़ा के चलता है
खुद को कहे ख़ुदा का माननेवाला
बच्चे जो मासूम दफनाते चलता है
करता तो है दावा वो भी आदमी है
आदमियत ही पर भुला के चलता है
—– निदाघ
Har kaam hai uska khabbishon ka,
Bas Insaani chehra lga k chalta hai.
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bahut hi umda baat ko sateek tarike se kahi hai apne
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Bahut sundar bhasha ka prayog hai
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जी बहुत बहुत शुक्रिया संचित जी 🙂
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