Wikipedia होली को कुछ ऐसे define करती है, “A Hindu spring festival of colors”। आपका पता नहीं लेकिन मुझे इस definition से खासी परेशानी हुई। आखिर बचपन से ही होली खेलता आ रहा हूँ लेकिन कभी रंगों को धर्म पूछते नहीं देखा। ऐसी फितरत नहीं रंगों की। देखा है तो बस गुलाल हवा में उड़ते हुए, रंग-भरे गुब्बारे किसी की सफ़ेद कमीज़ पर फटते हुए, और भंगेड़ियों को हँसते और लोटते हुए। होली बस कोई बसंत उत्सव नहीं, न ही ये सिर्फ हिन्दुओं का पर्व है। होली बस रंग-अबीर से नहीं खेली जाती, न ही होली मात्र एक दिन celebrate की जाती है। इस पर्व के खुद ही हजारों रंग हैं। होली से 10 दिन पहले ही लोग रंगे नज़र आने लगते हैं। फटी और रंगी shirt लिए लोग घर वापस घुसते हैं। बच्चे पिचकारी खरीदने की जिद में लाल-पीले दिखाई पड़ते हैं। कोई गाल पर रंग मलता है तो कोई कीचड़ में सबको उठा-उठा पटकता है। शरीर कितना भी भद्दा दिखता हो लेकिन होली के दिन सब bare-chested ही दिखाई पड़ते हैं। ये तो हुई बात कि होली खेलते कैसे हैं, लेकिन असली मज़ा तो नहा-धो कर खाने-पीने में है। पुआ, छोले, दही-वड़ा, खीर, mutton और न जाने किन-किन पकवानों से रसोई पट जाती है और शाम होते ही एक-दूसरे के घर धावा बोल कर मज़े उड़ाये जाते हैं। कुछ महारथी ठंडई के नाम पर भांग पीकर समूचे रसोई पर ही हमला बोल देते हैं। हँसी और उल्लास के ऐसे माहौल में गिले-शिकवे का गायब होना स्वाभाविक है। बहुत होली खेली अब तक – घर पर रह कर, hostel में, एक बार तो घर लौटने के दौरान bus में भी; लेकिन होली क्यों खेलते हैं कभी सोचा नहीं, न ही किसी ने बताया। कभी जरूरत नहीं हुई क्योंकि कारण बड़ा साफ़ है। होली रंगों का नहीं भाईचारे का पर्व है। होली अपनी गलती स्वीकारने और दूसरों को माफ़ करने का एक तरीका है। रंगों को धोते हुए मन का मैल निकालने की विधि है होली। ‘बुरा ना मानो होली है’ बोल कर लोग हमें गुस्सा पीना सिखाते हैं। कई बार तो हम गुस्सा छोड़ हुड़दंग में शामिल हो लेते हैं। होली extrovert बनने की मुहिम है। अब इन सब के बाद भी अगर होली को बस हिन्दुओं से जोड़ कर देखा जाए तो ये नाइंसाफी हुई. Wikipedia चाहे कुछ भी कहे लेकिन हमें होली का ये definition ही सटीक मालूम पड़ता है कि “Holi is a Indian spring festival of colors, love, joy and brotherhood”।